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________________ ३५. १८.१४] हिन्दी अनुवाद ३८५ स्वर्गमें इन्द्रकी विभूतिका भोग कर, जिनप्रतिभाकी पूजा कर, दिव्यदेहको छोड़कर वे दोनों यहाँ आये और दोनों तुम्हारे पुत्र हुए। वसुपाल, श्रीपालको अत्यन्त महान् शुभकारो पुण्यप्रवृत्तिको सुनकर तथा मुनिवन्दना कर सब लोग सन्तुष्ट हुए। और उत्साहके साथ अपने नगरको चल दिये । मायासे रहित प्रियतमा सुखावती ऐसी मालूम होती थी, जैसे पावसकी छायासे इन्द्रधनुषी। जब वह सुन्दरी अपने घर गयी तब तक वसुपालका विवाह कर दिया गया। रतिसे युक्त एक सौ आठ रत्न युवतियां उसके कर-पल्लवसे लगीं। पत्ता-इस प्रकार पर पुरुषसे परामुख, पुष्पदन्तके समान शोभित मुखवाली सती सुलोचना अपना चरित्र राजावर्गके अनुचर जयकुमारसे कहती है ||१८|| इस प्रकार ब्रेसठ महापुरुषों के गुण-अलंकारोंसे युक्त महापुराणका महाकवि भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यमें प्रभु श्रीपाठ संगम नामका पैतीसवाँ परिच्छेद समास हुमा ॥१५॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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