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________________ ३८३ ३५. १७.१४ ] हिन्दी अनुवाद घत्ता - श्रीपालने अपने दोनों हाथ मुकुटपर चढ़ाते हुए महान् गुणोंके पालन परममुनी परमात्मा परमेश्वर की परमार्थ भावसे वन्दना की ||१५|| १६ जिन्होंने कामदेवको नष्ट करके डाल दिया है, ऐसे योगीश्वरसे माताने पूछा कि मेरे पुत्रको किसने अलंकृत किया। यह चन्द्रमा के समान महान् बभासे आलोकित क्यों है ? जिनेन्द्रभगवान् कहते हैं कि हे कृशीद पूर्वज में इसके पेक्षा होने ही इसकी मर गयी। जो जंगलमें यक्ष-देवी हुई । जो मानो गंगाकी तरह अनेक विभ्रम और विलासवाली थी । शरीरसे इसे अपना पुत्र समझकर उसने अत्यन्त स्नेहसे इसकी पूजा की। इतनेमें सुखावती आ गयी । कुमारने कहा कि इसने अपनी शक्तिसे मेरी रक्षा की है। दुःख प्रकट करनेवाले विद्याधरों और माया अनेक दुष्टोंसे घूमते हुए और आपत्तियों में पड़ते हुए मेरी यह आधारभूत लता रहो है । यह मेरे लिए चिन्तामणि, कामधेनु, कल्पवृक्षको भूमि सिद्ध हुई है । वह मेरे लिए संजीवनी औषधि कष्टरूपी समुद्री नाव जैसी है । मेरी प्रिय सखी धत्ता -- इसने मुझे बचाया है। संसार में जिसका न पुत्र, कला और न इसके लिए मुझे अपना जीव भी दे देना चाहिए। इस सुधीजन ऐसा व्यक्ति दुःखरूपी जलमें डूब जाता है ||१६|| १७ तुम्हारे साथ ही मेरे मुखका राग चमक सका और हे आदरणीय, मेरा मिलाप हो सका । जो-जो है, वह सब इसकी चेष्टा है। इसीके बलसे मैंने शत्रुबलका नाश किया। यह सुनकर विनयसे प्रणतांग होती हुई कुलवधूको सासने गले लगाया और वह बोली- हे बेटी ! 'मैं तुम्हारी क्या प्रशंसा करूँ 1 क्या मैं सूर्यं प्रतिमा के लिए आगकी ज्वाला दिखाऊँ। तुमने मुझे चक्रवर्ती लक्षणोंसे सम्पूर्ण मेरा बेटा दिया। तुम्हीं एक मेरी आशा पूरी करनेवाली हो । युद्ध में तुम सूर हो। कहाँ तुम्हारी युवती सुलभ कोमलता ? और कहीं शत्रुको विदोण करनेवाला पौरुष ? जिसने हाथियों के गण्डस्थलोंको जीता है ऐसा तुम्हारा स्तन युगल जो धनुषको डोरीसे मच्छन्न धनुषकी तरह है । मेरे पुत्र के लिए कामदेव के पाशकी तरह तुम्हारी दोनों भुजाएँ शत्रु के लिए कालपाशके समान हैं । तब कन्या कहती है कि पुण्यके सामर्थ्यसे यक्षिणीने अपने हाथसे गिरते हुए पहाड़को उठा लिया। और त्रिशूलसे भेदे जानेपर भी शरीर भग्न न हुआ । हे आदरणीय ! जहाँ तुम्हारा बेटा है। यहाँ सब कुछ भला होता है। कुबेरलक्ष्मी फिर पूछती है कि किस कर्मसे मैंने ऐसा पुत्र और कर्म देखा । धत्ता-तब महामुनि रानीसे कहते हैं कि पूर्वजन्ममें तुम्हारे दोनों पुत्रोंने जिनेन्द्र के द्वारा कहा गया अत्यन्त कठिन तप और अनशन किया था ॥ १७ ॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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