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________________ ३८१ ३६.१५.११] हिम्बो मनुवाद भरतने उसे सरके जलसे अभिसिंचित किया, सफेद खिले हुए कमलोंसे अचित किया, फिर उसने जिनके शरीरकी श्रीकी भक्तिभावसे स्तुति की कि जो सब प्राणियोंसे मित्रताका भाव स्थापित करनेवाली थी। इतनेमें भद्र प्रशस्त और हस्त गुणोंसे शोभित यक्षिणी तत्काल वहाँ आयो । घत्ता -- अखिल निधियोंकी स्वामिनीने बात करके, जिसके नेत्र हर्षसे उत्फुल्ल हैं, ऐसे प्रजाधिपति भरतको यहाँपर बैठाकर मंगल कलशोंसे अभिषेक किया ॥ १३॥ १४ सुन्दर अलंकार, वस्त्र, छत्र और दण्ड रत्न दिये तथा आकाशमें गमन करनेवाली खड़ाओंकी जोड़ी दी। जो-जो सुन्दर था, वह वह दिया। तब जिसे रतिके कारण ईर्ष्या उत्पन्न हुई है ऐसी विद्याधरी घूमती हुई वहाँ आयी । उस स्वेच्छाचारिणीने राजाको देखा और आकाशसे पत्थरका समूह गिराया। लेकिन दिव्य शत्रुरत्नसे प्रस्खलित होकर वह गिरती हुई चट्टान चूरचूर हो गयी। मुझसे रमण नहीं करते हुए पुष्पदन्त नागको फुंकारका जिसमें स्वर है ऐसे विवरके भीतर तुम मरो। इस प्रकार कहकर उस स्वेच्छाचारिणीने उस शेरगुहाके द्वारपर एक बड़ी चट्टान फैला दी। लेकिन उस पृथ्वीपतिने अपने प्रचण्ड-दण्डसे खण्डित करके उसके टुकड़ेटुकड़े कर दिये । .... पत्ता - द्वार खोलकर राजा पादुका युगलसे जाता है । आकाशमें जाते हुए पुण्डरीकिणी नगरके निकट यह विजयार्धं पर्वतको देखता है ॥ १४ ॥ 處 १५ वहाँ विमुक्त स्कन्धावार देखता है कि आज वह सातवां दिन भी आ पहुँचा । हे माँ ! तुम्हारा छोटा बेटा कामदेव के समान कामदेव नहीं आया। तीनों जगका मेरा भाई नहीं माया । ऐसा कहकर उसने आकाशकी ओर देखा । तब वसुपालने कहा – क्या यह चन्द्रमा है ? क्या यह नम सन्ध्या मेघ दिखाई देता है ? या कोई पक्षी है ? नहीं नहीं यह निश्चय ही मनुष्य है । नया यह बिजली है ? नहीं नहीं यह रत्नदण्ड है । क्या तारावली है ? नहीं नहीं ये अलंकारोंके मणि हैं। इस प्रकार विचार कर राजा व सुपालने कहा कि यह निश्चयसे हमारा माई आ रहा है। इस प्रकार उनके बात करते श्रीपाल वहाँ आ पहुँचा मानो विधाताने उनके लिए सुखपुंज दिया हो । सुधीजन और परिजन हर्षसे रोमांचित हो उठे । वहाँ एक भी मानव ऐसा न था जो नाचा न हो। उसे विश्वके पिता और प्रत्यक्ष विघाता-पिता के समूह - शरणमें ले जाया गया। उन्होंने स्वामीको प्रणाम किया। उन दोनोंने उसी प्रकार जिनेन्द्र भगवान्के दर्शन कर संसारमें परिभ्रमण करने की अवस्थाको निन्दा की ।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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