________________
३७८
महापुराण
११
यसारिउ सोचण्णसिलायलि मणि णिसुणि हूई जक्खहुँ कुलि | हउँ तुह माय पुत्त पोमावा पुठवजम्मि होती पाडलगइ। एम्व चवेष्पिणु णेहपयासे बालु पसाहिउ करसंफासें। मुक्खेतण्हणिहालमु गाउ तणड पवुत्तु ताइ संतुहल । फुरियविविहमणिकिरणणिरंतरि पइस हि गिरि गुइविवरभंतरि । तं णिसुणिवि सो तेत्थु पहाड | तावेत्तहि संगामि पणट्टत । धूमवेउ सज्जियसरजाहि विज्जाछेड करतिहि बालहि । पुणु उत्पाणु वियप्पु विहीसरु जिह देविइ उद्धरिउ णिहीसर । गय णियवासहु वीणालायिणि एचहि राव रायडामणि । पत्ता-पसंतु विसंतुलि विवरवहि सलिलमेहादहि पडिया ।। ___ तहि जंतु वरंतु सिलामयहु खंभट उप्परि चडियज ॥११॥
तावत्थइरि सूरु संपत्तर ___णं दिणराएं झेंदुइ घिचउ। सहइ जंतु वरुणासालाणिहि मणि व पडंतु महण्णवखाणिहि । कुंकुमकुसुमामेलु व रसउ ण चउपहर सहिररसलित्तउ। शं व महामहरियाई : लु व दिसतमणिइ बसियत्र । भाणुबिंबु किरणाव लिजलियउ उग्गत्तेण अहोगइवडियउ । मंदतमालणीलि पसरियतमि तहिं विवरंतरि रयणिसमागमि । णकचकमयपसरविसपण णीलसिलायलखंमि णिसण्णम् । सिरिअरहंतसिद्ध आयरियहुं उजझायडे साहाई कयकिरियहुं। पंचहुँ संचियसम्मयादिष्टिहिं सुयरइ पहुचरणई परमेट्टिहिं । धत्ता-असियाउसाई पंचक्खरई झायंसह साणंदई ।
चोरारिमारिसिहिपाणियई उवसमति मृर्गवंदई ॥१२॥
१३
ताम पहाइ कालि रवि उपराउ णं महिउयह वियारिवि णिग्गव । शीर तरेप्पिणु तेण तुरंत
तीरि परिट्टिय तहि जि भमंत । राएं णयणाणंदजणेरी
दिही पडिम जिणिदह केरी। णि व्वियार णिग्राथ मणोहर पहरणव जिय ओलंबियकर । लक्खणलक्खुवलक्खियदेही हज सा भणमि अहिंसा जेही ।
हज सा भणमि कुहिणि अपेषग्गहु कढिणमुयग्गल णारयमग्गहु । ११. १. MB पुत्त माम । २. B°तिहुँ । ३. पढउ । ४. B धूमकेउ । ५. MB भहद्दहि । E, MB
तुरंतु । ७. T विसंकलि । १२. १ MB दिसप्तरूणिइ । २. MB गइपडियउ । ३. MB सिलायलि | ४. MB मिग । १३. १. MBK पहायकालि । २. MB अववाह ।