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________________ added ३५.४.४] हिन्दी अनुवाद ३७१ 1 और युद्धका बहाना खोजनेवाले उस घोड़ेको उसी प्रकार पकड़ लिया जैसे सिंह हरिणको पकड़ लेता है। और फिर अपना केशर से पीला चंचल हाथ फैलाकर । फिर उसपर बैठा हुआ अपने बाहुबल से प्रबुद्ध राजाने उसे प्रेरित किया। राजाके द्वारा लगामसे चालित कोड़ा देखकर वह घोड़ा में हो गया । पुलकित शरीर विद्याधर समूहने मंगल शब्दको प्रकट करनेवाला कल-कल शब्द किया । घसा तब राजा अहिबलने उसे अतुल बलशाली राजा समझकर देवताओंके रंगकी तथा सुन्दर चन्दनसे सुभाषित अपनो चन्द्रलेखा नामकी कन्या उसे दे दो ||२|| चन्द्रलेखासे पूछकर वह चल दिया। सुखावती के द्वारा ले जाया गया, वह पल-भर में वहाँ गया जहाँ कि वह सीमान्त महीषर था, कि जिसके कटिबन्धपर बड़े-बड़े कल्पवृक्ष लगे हुए थे । स्वर्णके रंगवाले वे दोनों जब लताकुंज में बैठे हुए थे तब दो विद्याधर तलवार अपने हाथ में लिये हुए आये । मानो आकाशमें सूर्य और चन्द्रमा उग आये हों। तब विनयका प्रयोग करते हुए कुबेर के पुत्र श्रीपालने मधुर वाणी में उनसे पूछा कि आप दोनों सुन्दर कान्तिवाले दिखाई देते हैं। बताइए आप किस कारण, किसके लिए माये हैं। उन्होंने कहा कि अपना नगर छोड़कर तथा चरण-कमलोंसे आकाश मण्डित करते हुए हम लोग आपको खोजने तथा द्वय बुद्धि और पोरुषकी परीक्षा करने आये हैं । लो-लो यह तलवार और इसे नमस्कार करो। यदि तुम पत्थरके इस खम्भेको तोड़ देते हो तो तुम विद्याधरों और मनुष्योंके ईश्वर चक्रवर्ती समाट् होंगे । धत्ता - यह सुनकर तलवार अपने हाथ में लेकर कुमारने खम्भेपर आघात किया। उसकी तलवाररूपी जलधारासे वह पत्थर भी दो टुकड़े हो गया ||३|| ४ वे दोनों विद्याधर - तुम्हीं विजयधोका वरण करनेवाले चक्रवर्ती हो, इस प्रकार अभिनन्दन कर चले गये । सुखावती के मन्त्रसे आराधना कर, उस भयंकर तलवारको सिद्धकर, कुमारके लिए जो तरुण सूर्य के समान उपहारमें दी गयी उस तलवारको उसने अपनी मुट्ठीसे दबाकर देखा। हर एक विद्याओंकी सामर्थ्य से सम्पूर्ण मुग्धजनोंके लिए सौभाग्यस्वरूप मुग्धा सुखावती
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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