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________________ सन्धि ३५ तब विद्याघरोंको आँखोंको अवरुद्ध कर तीनों लोकोंमें श्रेष्ठ सौन्दर्यवाली वह सुखावती कन्या वहाँसे ले गयी। __ जिसमें सूर्यको किरणोंसे आलिंगन किया है ऐसे आकाशके आंगनमें जाता हुआ प्रिय पूछता है कि हे सुखावती, बताओ कि क्या नाकाशमें ये शरद्के बादल हैं। वह कहती हैनहीं-नहीं, ये आकाशको छूनेवाले घर हैं। क्या ये आती हुई बलाकाएँ दिखाई देती हैं ? नहीं-नहीं ये हिलती हुई ध्वज-मालाएँ हैं। हे कल्याणी, क्या ये रंग-बिरंगे इन्द्रधनुष है ? नहीं-नहीं, प्रिय ये पवित्र तोरण हैं। क्या ये नक्षत्र हैं ? नहीं-नहीं ये रत्न हैं। या नगरकी आंखें मन्दिरपर लगी हुई हैं, क्या ये धरती के अप्रभागपर आकाश स्थित हैं ? नहीं नहीं, यह नागनगर फेला हुआ है। हे देव ! यह नागबल नामका राजा है। बलवान और अदीन इस नगरमें रहता है। इस तरह बात-चीत करते वे दोनों वहाँ उतरे जहां लोगोंका मेला लगा हुआ था। प्रियतम पूछता है क्या यह कोई जनपद है। कुमारी कहती है, यहाँपर हय ( घोड़ा) निवास करता है। जिन्होंने शशिलेखाका असह्य विरह दुःख सहन किया है, ऐसे गन्धवाह रूप्यक और चित्ररथका वह अश्व राजासे पकड़ा नहीं जा सकता, उसी प्रकार जिस प्रकार खोटे मुनि अपना चंचल मन नहीं पकड़ पाते। पत्ता-उरावने नेत्रों और बिना मसोंवाला लाखों लक्षणों से विशिष्ट और लोहोंके नालसे रचित खुरोंवाला विशाल वक्षका वह धोड़ा राजा श्रीपालने देखा ॥१॥ तीखे खुरोंसे धरती खोदनेवाला, मरकतके समान शरीरवाला, लोगोंको कपानेवाला, लाललाल नेत्रोंवाला, टेढे मुखवाला, दांतोंसे भयंकर, शत्रुके क्रोधको चूर करनेवाला वह घोड़ा दौड़ा। विश्वका मर्दन करनेवाले कुमारने लिहिलिहि शब्दके द्वारा दसों दिशाओंको बहा बनानेवाले
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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