SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४.१०.१०] हिन्दी अनुवाद सामर्थ्यस घटित हुआ। विद्याधर राजा अपने घर गया । और उस कुमारके शरीरसे नींद रमण करने लगी। सुखसे सोते हुए उसे विद्यारियां उड़ाकर ले गयीं। बतामो कि अपना प्रिय किसे अच्छा नहीं लगता 1 मुड़ और रसायन जैसे मीठे लगते हैं। ले जाते हुए मैं क्या वर्णन करूं? त्रिभुवनको प्रसन्न करनेवाला वह उठ गया। चंचल मेघोंको धारण करनेवाली आकाशरूपी नदीमें उसका मुख खिले हुए रक्त कमलकी तरह दिखता है। जगमें श्रेष्ठ, महान् शोभित आकाशको उसने अनन्त भगवान्की तरह देखा। पत्ता--फिर उसने तन्त्र-मन्त्रवाली अपनी स्त्री सुखावतीका ध्यान किया। हे सुन्दरौ! देवो आदरणीया !! तुम्हारे बिना इस आपत्ति में मेरी कोन रसा करता है ।1८॥ में किसी के द्वारा कहीं ले जाया जा रहा हूँ। यहाँ में जीवित रहूँगा या मर जाऊँगा । यहां में यह नहीं पाहा माकता। तुल, जिसका मुक्तट मणि सूर्यसे प्रज्वलित है ऐसी विद्याधर स्त्री प्रकट हुई और बोली-हे पुरुषश्रेष्ठ, तुम्हारे कष्टोंको दूर करनेवालो तुम्हारी मैं यहां स्थित है। तुम जो कहते हो उसे मैं अनायास कर देती है। मैं आकाशमें जाते हुए प्रलयके सूर्यको भी पकड़ सकती हूं। कमलावतीके लिए तुमने जब अपनो दृष्टि दी थो तब ही ईर्ष्या कारण हे स्वामी ! कन्याको दयासे तुम्हें विरहमें जलते हुए देखकर अपने घर ले जाते हुए और हर्षसे मिलते हुए हे प्रियतम, तुम्हें यदि में एक पल के लिए भी छोड़ती हैं तो क्या मैं रातको सुखसे सो सकती हूँ। घत्ता-दुष्टोंसे व्याप्त तथा जिसमें पुडके लिए कोलाहल किया जा रहा है ऐसे जनपदमें, 'मैं किसी दूसरेको अपनी आँखोंसे न देखूगी और दृष्टिसे अदृश्य शरीर होकर धैर्य धारण करते हुए मैं हे आदरणीय ! तुम्हारी रक्षा करूंगी ।।९।। १० जबतक प्रियके अन्तरंग अंगको कपानेवाली यह बातचीत हुई। तबतक जिसने अपनी प्रत्यंचापर तीर चढ़ा लिये हैं तथा जो माननीय स्त्रीके माननीय विस्तारको नष्ट करनेवाला है ऐसे दुष्ट मेधको कामदेव जानकर सुन्दरियोंने आकाशका उल्लंघन कर लिया। इतनेमें नभ और धरती तथा दिशारूपी दिवालोंको हिलानेवाला भयंकर शब्द उत्पन्न हुआ। गज पहाड़को गुफामें रहनेवाले हरिणोंके समान भयके कारण दूर चले गये। महामुनिने अपना ध्यान केन्द्रित कर लिया । मृगेन्द्रोंने क्रोधके साथ गर्जना को। वृक्ष गिर पड़े। रसातल फूट गया और भयसे विहुल भूमितल हिल गया। तब अपनी रुचि ऋद्धिसे इन्द्राणीको जीतनेवाली सुखावतीको मनमें शंका हुई। पुष्टि और कल्याणको देने वाले आकाशके आँगनमें स्थित राजा घोपालने स्वयं देखा। एक हाथी जो सुरभित गन्धवाला था, जिसकी सूइसे अविकलित मदको जलधारा बह रही थी, जिस
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy