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________________ + 1 1 1 ३४.८४] हिन्दी अनुवाद ३६१ दुःखी होकर बोलती नहीं। तब यक्षदेवने उसके बुढ़ापेको नष्ट कर दिया। ये चक्रवर्ती लक्ष्मी श्रीपाल और ये तो कुमारियाँ हैं । कुब्जा, विद्याधरी, सुखावती भी सुन्दर हो गयीं तब रतिप्रभा यादि भो कन्याओंने यह सुन्दर बात कही कि हजारों विलासोंसे युक्त दोनोंके भावोंका निग्रह करनेवाले सुन्दर प्रियको हे मानवीय हमें दिखाइए। यह विचार कर सुन्दरीने चन्द्रमाके समान मुखवाले तथा रूपमें कामदेवके समान गम्भीर रागऋद्धिका उपभोग करनेवाले उस राजाको घोरे-धीरे दिव्य-चिन्तन और रूपके विभ्रमको नष्ट कर, उस पुण्डरीकिणीका राजा श्रीपाल बन्धुओं को दिखा दिया। उसे देखकर उनके मन में रति उत्पन्न हो गयी । कोई-कोई कामसे पीड़ित होकर धरती पर गिर पड़ी, कोई निःश्वास लेती सखी द्वारा देखो गयी। कोई शुक्रके पतनसे सखीजनों द्वारा लजायी गयो । किसी मूच्छितपर हिलते हुए चँवरोंसे हवा की गयी । धत्ता - इस प्रकार कन्या के अन्तःपुरको देखते हुए कामने वरको खोटे मार्गपर स्थापित काहिसा । अनुसरोंने बाहर करते हुए नगरके राजासे जाकर कहा ||६|| जो युवतो वाला यहाँ रखी गयी है, जिसे उस कुब्जाने हमें दिखाया है वह हंसगामिनी कन्या नहीं है। अपितु श्रीपाल नामका राजा है। तब युद्धकी इच्छा रखनेवाले अनेक वीर और प्रबल विद्याधर कुमार दौड़े। अपनी तलवारों और कनक तोपोंसे दिशाओं को आलोकित करनेवाले तथा युद्धका बहाना चाहते हुए वे भड़क उठे। लेकिन उस सुन्दर कुमारको देखकर वे वैसे ही शान्त हो गये जैसे जिन भगवान्को देखकर भव्य लोग शान्त हो जाते हैं। उस समय विद्याघर राजा आया और बड़े स्नेहसे उसने जंवाईको देखा। उसने समझ लिया कि ये परमेश्वर चक्रवर्ती हैं, विद्याधर राजा सन्तुष्ट हो गया। उसने कंगन कुण्डलसे सम्मान किया। बड़े-बड़े हार-डोर मणियोंसे उज्ज्वल तथा देव संग्रामको विजयश्री के लिए लम्पट तथा हरिवाहन तथा देव धूमवेग दोनों योद्धाओंने विचार किया कि मेखला धारण करनेवाले तथा शान्त भावकी इच्छा रखनेवाले हम लोगोंने यह क्या किया । घता -- कपटी मायावी कन्या रूपमें युद्धमें स्थित शत्रुको भी हमने नहीं मारा। इसका नतीजा क्या हुआ ? विद्या नष्ट होकर चली गयी और गुणगणको दूषित कर हमने केवल अपनेको नष्ट किया ||७|| ፡ गत दिन हम लोगोंने जो कलह किया, उसकी कहीं भी किसीने सराहना नहीं की । उस विद्याधर राजाने नरवरसे पूछा कि तुमको महिला रूपमें देखा था, फिर तुम जिस तरह इस पुरुष रूपमें हो गये वह समस्त वृत्तान्त कहिए । तब उसने संक्षेपमें कहा कि यह सब इस कन्या की २-४६
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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