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________________ हत्या अमुवाद यह सुनकर स्वजनोंने कहा कि इस लड़कोने तो तोन लोकोंको उछाल दिया है। श्रीपालरूपी कल्पवृक्ष जिसका पति है, ऐसी सुखावतोने अपनी सामथ्र्यका डंका बजा दिया है। यहांपर नन्दनवनमें स्थित वारिसेनके लिए राजा उत्कण्ठित हो उठा। सहायताका स्मरण करते हुए उसे उस दुर्जेय मायाकी कुठाने फूलोंसे आहत कर दिया। वह कुमार अपने मनमें सोचता है कि क्या मनिमनका नाश करनेवाले कामदेवके ये तीर पर रहे हैं। पतिमें अनुरक्त पूर्वको वयमें अदृश्य रूपसे युक्त उसका ( श्रीपालका ) लक्षण और प्रमाणसे युक्त कन्या स्वरूप बना दिया । जिसकी मति संचित संशयसे मूढ़ है, ऐसा चिन्ताकुल वह भुवनपति अपने मनमें सोचता है कि मेरा यह कन्या रूप किसने बना दिया ? बिना अंगूठोके यह दुबारा कैसे सम्भव हुआ। पत्ता-उसके उस रूपको देखकर और महिला समझकर, असह्य कामवेदनासे नष्ट (भग्न) अपने-अपने गोत्रोंके दिवाकर दोनों विद्याधर भाई उसके पोछे लग गये । एक कमलिनी लेकिन उसके लिए दो-दो हंस, एक दुबली-पतली कली उसके लिए दो-दो अमर यदि होते हैं तो यह होना घटित नहीं होता। केवल कामदेव वेधता है। और सर सन्धान करता है। क्या दो-दो आदमी एक तरुणीके स्तनोंका अपने कोमल करतलोंसे आनन्द ले सकते हैं। यह विचारकर उन्होंने युद्ध प्रारम्भ किया। दोनोंने सजनताका नाश कर दिया। एकदूसरेके ऊपर जिन्होंने अपने शस्त्रका प्रहार किया है ऐसे उन विद्याधरोंके बीच में बड़ा भाई आकर स्थित हो गया और बोला कि (दोनोंने प्रेम सम्बन्धको भयंकर बना लिया इससे भाइयोंको मित्रता विघटित होती है। फिर दूसरे नये लोगोंका क्या होगा?) यह कहकर उसने अपने हायमें भयंकर तलवार उठाये हुए उन लोगोंको मना किया। तब वह माया कुमारी, जिसका उत्तंग शिखर ऐसे अपने विजया पर्वतवाले घरपर उसे ले गयी। रागसे उसने उसे सुन्दर समझा और तृणको सेजपर उसे निवास दिया। पत्ता-युवजनके मनको चुरानेवाली उस कुमारीसे कहा कि यह किसकी है और क्यों आयो है ? तब पोन स्तनोवाली उस विद्याधर स्त्रीने हंसकर यह बात निवेदित की ||५|| हे स्वामिनी, यह अनेक गुणों से युक्त पुण्डरी किणी नगरीके राजाकी लड़की है। कामसे लम्पट विद्याधरके द्वारा धरतीमें प्रसिद्ध भोली पण्डित यह मानविका कन्या यहां लायी गयी है। स्वच्छ और लाल आँखोंवालो हारडोरसे विभूषित शरीरवाली यह भाई और माताके वियोगसे
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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