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________________ २४.३.१५] हिन्दी अनुवाद ३५७ वारिसेन ले गया। रात्रि राजाका मुख प्याससे सूख गया। वह विमलपुर नगरको ऊंचाईपर पहुंचा। विद्याधर राजा पानी देखने वला और जैसे ही उसने कमल वापिकापर दृष्टि डाली वैसे हो उसे उसी प्रकार सूखा देखा जिस प्रकार कि विलासी वेश्याको स्नेहहीन क्रीड़ा हो। पत्ता-असह्य शरीरको उष्णतावाली, प्याससे सन्तप्त तथा दोड़नेके आवेगसे प्रान्त कुमार 'श्रीपाल' सप्तपर्णी के पत्तोंके नीचे पक्षियोंके कोलाहलके बीच जब बैठा हुआ था ||२|| वहाँ विद्याधरने जाकर उसे आश्वासन दिया और कहा कि हे देव! तुम रो मत मैं शीतल जल लेकर आता हूँ। यह कहकर बह गया, और उसने वेगसे बहनेवाली पानीसे भरी हुई नदी देखी। लेकिन वह नदी भी, जिसने हरिणोंके लिए अत्यन्त वितृष्णा सत्पन्न कर दी है, ऐसी मुगमरीचिकाके समान दिखाई दो। राजाधिराज राजा श्रीपालको मापत्तियोंका दलन करनेवाली सुखावती कन्याने उस नदोको सुखा दिया। उसने जाकर प्रियको मालतीकी मालासे ताड़ित किया और उसके प्यासको पीडाको नष्ट कर दिया। विकट और उद्भट नदी तटसे पानी न पाकर वारिसेन लौट आया। तब प्रच्छन्न कन्या (सुखावती) बोली-तुम बेचारे किसके प्रवेचित हए हो, तुम अपने सुन्दर घरको किस प्रकार पा सकते हो. तम फौरन पले जामो मैंने कह दिया । इसका शत्रु यदि अजेय है, तो तुम व्यर्थ अपने चित्तमें अभिमान बुद्धि मत करो। यह सुनकर वारिसेन लोट पड़ा और पलमात्रमें अपने घर आ गया। थोड़ेमें उसने अपने लोगों और बन्धुओंको बता दिया कि किस प्रकार बावड़ो और नवीका जलसमूह कुमारीने सोख लिया और स्वयं पृथ्वीनरेश ( श्रीपाल ) को ग्रहण कर लिया है, और मुझे यहाँ भेज दिया है। पत्ता-उसकी पंधल भ्रमरोंसे सुन्दर मालतीसे राजाको भूख और प्यास नहीं लगती। जिसकी गहिणी सुखायती हृदयको रजित करती हो, उसे आपत्ति कहाँसे आ सकती है ? ||शा
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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