SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्धि ३३ उस तरुण श्रीपालने अपनी सर्वोषधिको सामथ्यं प्रकाशित की। सुखावतीने जो उसका बुढ़ापा किया था उसने उसे नष्ट कर दिया। जिसने विद्याओंके शासनको सिद्ध किया है ऐसे श्रीपालने अपने कोमल करतलके स्पर्शसे उद्दाम कामको इच्छाकी मति ( बुद्धि ) रखनेवाली उस सुखावतीके बुढ़ापेको भी नष्ट कर दिया। वे दोनों यौवनसे अलंकृत हो गये। विद्याधर कुमारीने ये शब्द कहे-हे देव ! तुम मेरे प्राण इष्ट हो, तुम साक्षात् चक्रधारी विष्णु भगवान हो। दुष्ट विद्याधर जिस प्रकार दूसरोंको मारते हैं, कहों वे तुम्हें और हमें न मार दें। इसलिए शुभ करनेवाली वृद्धाका वेश धारण करनेवाली मेरे कन्धेपर चढ़ जाइए। वृद्धरूप धारण कर आओ। विचित्र शिखरोंवाले उस सिद्धकूट पर्वतपर चलें। वहाँ युवाहदय-पोन-स्थूल स्तनोंवाली तुम्हारी प्रणयिनिया आज मिलेंगी। अशोक वृक्षके नव-पल्लवोंको तरह बाहवाली विद्याधर कुमारीको वहाँ देखोगे। तब उस कुमारके कन्धेपर आरोहण किया। बिजलोको तरह चंचल वह आकाश मार्गसे चली । नभके आँगनको लांघती हुई, वह तुरन्त जिनेन्द्र मन्दिरके प्रांगणमें पहुंची। पत्ता--उच्चरित सैकड़ों स्तोत्रोंसे त्रिभुवनके स्वामी जिनेन्द्र भगवान् की उन्होंने वन्दना की, और वे दोनों बूढ़े मन्दिरकी मुख्यशालामें बैठ गये ॥१॥ आदरणीय भोगवती, विद्युत वेगा और अनुपम बप्पिला वहां पहुंचीं। कामदेवकी लीला धारण करनेवाली मदनावतो आमी । जो मानो रतिरूपी रमणीको क्रीड़ा हो और भी मनोहर वर्णकी रंगवाली माठ कन्याएँ यहाँ अवतीर्ण हुई। वृन्दावनरूपी नदीसे धोये गये है केश जिसके, ऐसे उन वृद्ध-यूलासे उन कुमारियोंने बातचीत की। उन युवतियोंकी ऋद्धि देखकर वृद्ध 'श्रीपास'
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy