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१९.१०.१३ ]
हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार वन्दना करके, भरतका अधिपति भरत पूछता है-"हे परमयति, मैंने ग्राह्मणवर्णकी रचना की है। वे भविष्यमें समयके साथ अहिंसाकी प्रवृत्तिवाले होंगे या नहीं ? हे तीर्थंकर, बताइए? आप केवलज्ञानोको मैं क्या बताऊँ? रात्रि में मेरे द्वारा देखी गयो स्वप्नापलिका क्या फल होगा? हे आदरणीय देव, कहिए और मेरा सन्देह दूर कीजिए ? हे परमेश्वर नाभिराजके पुत्र, तुम किस पूण्यसे अरहन्त हुए हो ? किस पुण्यसे मैं चक्रवर्ती तथा भारतभूमि तलका विजेता हुआ है? पर्वत नितम्बतटका कपानवाला बाहुबलि किस पुण्यसे बलवान हुआ ? किस पुण्य दानरूपी रथका प्रवर्तन करनेवाला श्रेयांस राजा उत्पन्न हुआ ? किस पुण्यसे सोमप्रभके समान सोमप्रभ राजाका जन्म सम्भव हुआ? किस पुण्यसे तुम्हारे सभी पुत्र विनयका पालन करनेवाले हुए ?"
पत्ता-तब नवमेधके समान ध्वनियाले महामुनि ऋषभ कहते हैं- "हे पुत्र, तुनने जो पूछा है वह सुनो। तुम्हारे द्वारा निर्मित द्विजशासन, समयके साथ कुरिसत न्याय और नाश करनेवाला हो जायेगा" ||२||
"हे पुत्र, पापकार्य क्यों किया। ये लोग ( ब्राह्मण ) पशु मारकर उसका मांस खायेंगे । यज्ञ-में रमण करेंगे, स्वच्छन्द क्रीड़ा करेंगे, मधुर सोमपान करेंगे। पुत्रको कामिनी परस्त्रीका ग्रहण करेंगे, और दूसरोंके लिए अपनी पत्नी देवेंगे, मद्यपान करते हुए भी दूषित नहीं होंगे। हे राजन्, प्राणिवधसे भी वे दूषित नहीं होंगे। वे जो करेंगे उसीको धर्म कहेंगे, और वह भी उसी कर्मसे तरेगा। शून्यागारों, वेश्याकुलों और भी पापोंसे अन्धे राजकुलोंके कुलकर्मीको जहाँ धर्म कहा जायेगा, हे पुत्र वहाँ मैं पापका क्या वर्णन करूं। वे गाय और मागको देवता कहेंगे। पृथ्वी और पवनको देवता कहेंगे, वनस्पतिको देवता और जलको देवता कहेंगे। मांसके नित्यभोजनको व्रत कहेंगे, मद्य और परस्त्रियोंके साथ । और दूसरे-दूसरे पुराण वे लिखेंगे । देवीके द्वारा यहयह किया गया, लो इस प्रकार मूर्ख पापोंका पोषण करेंगे।
पत्ता-स्वयं अपने कुलोंको चाहकर, दूसरेके कुलकी निन्दा कर धीवरी पुत्र ( व्यास) गर्दभी पुत्र ( दुर्वासा ) जैसे कपटपूर्ण आगमोंको पूर्तता करनेवालोंको परम ऋषित्व और प्रभुत्व देंगे ॥१०॥