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________________ २२. २३.१२] हिन्दी अनुवाद पत्ता-या सुनकर परवर्ती कहता है-कान्तिसे युक्त पुण्डरिंकिणी नगरीमें गुणपाल नामक राजा है उसका पुष वसुपाल है मैं उसका छोटा भाई हूँ ॥२१॥ २२ जगमें श्रीपालके नामसे जाना जाता है और देव-वणिों में 'मैं गाया जाता है। एक मायावी घोड़े द्वारा मैं यहां लाया गया है। यह बात समस्त ज्योतिषियोंके द्वारा जानी गयी है। गुरुके वियोगके सन्तापसे दुःखी अपने प्रियजनों के वियोगमें अत्यन्त उत्सुक दुःखी 'मैं' यहाँ रह रहा हूँ। यदि मैं अपने भाईसे मिलता है तो जीवित रहता है। नहीं तो निश्चय ही मैं यमपुरके लिए चला जाऊँगा। वृद्धा कहती है कि अरे तुम तो दोन व्यक्ति मालूम होते हो। इस स्वभावसे तुम राजा नहीं मालूम होते हो । तुम बेर बांधकर लाये। किस विधाताने तुम्हें राजा बनाया । तुम दूसरोंके दारिद्रयका क्या नाश करोगे। तुम्हारा नगर धरती निवासीके लिए अगोचर है । कहाँ तुम ? और कहो तुम्हारा माई ? भन नहीं है. यह तुम सर कहते हो, तुम झूठ मत बोलो। तुम मेरे बाहरको व्याधि नष्ट कर दो। राजाने कहा मेरे पास आओ और उसने अपने हाथके स्पर्शसे उसका रोग दूर कर दिया। पत्ता-नव-सौन्दर्यसे उल्लसित होकर रोमांचको प्रकट करती हुई वह उसके गलेमें आकर लिपट गयी। उसने भी जान लिया कि यह मायाविनी कोई विद्याधरो है जो कामदेवसे आहत हो उठी है ॥२२॥ २३ कुमार कहता है कि हे देवि ! अपनी भौहें मत चलाओ। अरे-अरे तुम मुझे कितना अपमानित करती हो । तुम कपटसे प्रियको क्यों अर्जित करना चाहती हो। निश्चयसे सदभावपूर्वक तुम इसे छोड़ दो। तब कन्याने अपना वृद्धरूप छोड़ दिया और कोमल श्याम रंगवालो उसने कहा-हे राज-नरेश्वर-निष्कपट बात मुनिए ! पूर्व विदेहमें पुष्कलावती नामको नगरी है। उसके रामपुर नगरमें जिसने स्वर्णके समान महीपरोंको धोया है ऐसा हाथीके सूंडके समान हाथोंवाला अकम्पन नामका विद्याधरोंका स्वामी राजा है। उसकी 'शशिप्रभा' नामको कन्या है। वहीं मैं भुवनतलमें इस नामसे प्रसिद्ध है। ऐसी कोई विद्या नहीं है जो मुझे सिद्ध न हई हो। समस्त विद्याधर राजाओंने मिलकर स्नेहके साथ मुझे विद्याओंको जीतनेका पट्ट बांधा है। पिताने मुनिवरसे पूछा कि इसका कोन वर होगा? उसने कहा कि उसका वर चक्रवर्ती राजा होगा। हे देव ! अब और भी सुनिए। तुम्हारे शुभ फलकी कच्छावती धरतीपर रत्नाचल है। उसके मेघपुर नगरमें कम्पन नामका राजा है और उसकी हाथोके समान चालवालो मानसे रहित गृहिणी है। उसकी लड़की बप्पिला मेरी प्रिय सखी है। जो भानी पृथ्वीरूपी (लक्ष्मीरूपी) रमणीको प्रिय सखी है।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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