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________________ ३२. २१. १२] हिन्दी अनुवाद ३३३ २० अन्यथा हे पथिक! तुम जा नहीं सकते। तब पथिकने हंसते हुए कहा कि राजाको आज्ञासे गायके सींगको नहीं दुहा जा सकता । हे सुभट ! मैं जाता हूँ। इस प्रलाप, राजविनोद और मिथ्याधर्मसे क्या ? ऐसा कहते हुए भी उसे रोककर पकड़ लिया। उसने कुपित होकर शक्तिसे स्तम्भित कर गोल पत्थरों को पोठिका उस शैलमें बना दो और बुद्धिसे श्रेष्ठ उसने अनुचरोंसे पूछा कि ये कौन-सा देश है ? कौन सा राज्य काला है ? स्त्री को प्रत्यारों की क्या उपयक्क है ? तब अनुचर कहते हैं कि बड़ी-बडी शिखरोंसे यक्त बिजया पर्वतपर 'पवतवेग' नामका विद्याधर राजा जो कि 'अक्षय' शोभावाला है, यहाँका राजा है। सोलह विद्याधर राजाओंके द्वारा सीखी गयी, इस पत्थरोंकी परीक्षामें जो मनुष्य सफल होगा उसको एक लड़की मिलेगी। वह गोरे रंगवाली नवलावण्यसे युक्त सोलह कन्याओंसे विवाह करेगा। अनुचर अपनेअपने राजाके पास चले गये। कुमारने भी आगे चलनेका विचार किया, और चल दिया। मेघ विमान शिखरको देखकर तथा भूतरमण वनको छोड़कर जिस समय कुमार महानगरके बाहर ठहरा हुआ था। इतने में एक और वृद्धा वहां आयी-अत्यन्त बूढ़ी अत्यन्त जीणं । । । धत्ता-बुढ़ापेसे सफेद सिर और लम्बे स्तनोंवाली वृद्धा स्त्रीने आकर कहा कि है आदरणीय ! मैं बहुत दुःखी हूँ। ऐसा कुछ भी कहा और बेरोंकी पिटारी रख दी ।।२०।। शिथिल चमड़ी और अत्यन्त विद्रूप, वह पेड़के नीचे निकट बैठी हुई थी। उसने राजकुमारका लक्ष्मीके द्वारा मान्य कमलरूपी मुख नीचे किया हुआ देखा। भूख-प्यास और पथके श्रमको शान्त करनेवाले अमृतका आभास देनेवाले उसने बेर दिये। उस सुभगने रससे स्निग्ध उनको खा लिया। और दूसरे बेरोंको अपने अंचलमें बांध लिया। (यह सोचकर कि इन्हें राजा वसुपालको दिखाऊँगा और अपने नगरके नन्दनवनमें इन्हें बोऊंगा।) ऐसा सोचता हुआ जब वह बैठा था, तभी अपने भाई के संयोग की इच्छा करता है । तब जूहीके फूलके समान उज्ज्वल दांतोंवाली उस वृद्धाने हंसते हुए कहा कि ( मेरे बेरोंकी कीमत दो ) मेरे फलोंको क्या तुम मुफ्त खाते हो ? निर्लज्जको भौति मेरा मुख क्यों देखते हो? तब राजा कहता है कि मैं झूठ नहीं बोलता, जो तुम मांगती हो वो सब दूंगा। यदि तुम मेरे नगरमें आती हो तो मैं तुम्हारा दारिद्रय नष्ट कर दूंगा। तब वह वृद्धा कहती है कि तुम्हारा कौन-सा नगर है ! तुम कोन हो? तुम्हें किसने जन्म दिया ? और यहां किस लिए आये हो ?
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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