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________________ ३२. १९.१५] हिन्दी अनुवाद १८ लाल लाल आँखों और पोले बालीवाली और दादास भयंकर राक्षसका वेष धारण किये हुए विद्याने जैसे-जैसे वमन किया, पियो-पियो कहनेपर कुमारने अंजलीमें भरकर उस-उसको उसी प्रकार पिया। वह वीरचित्त उससे जरा भी नहीं इरा। राजा उससे पूछता है कि तुम ह्री श्री-धृति-कोति या मही क्या हो। वह देवी कहती है कि मैं वह सर्वोषषि विद्या हूँ कि हे वीर ! जो तुम्हें परमार्थ भावसे सिद्ध हुई हूँ। तब उस वृद्धावस्थावालेने उसे देखा। प्राप्त है दिव्यविद्याकी सामर्थ्य जिसमें ऐसे अपने हाथसे उस कुमारने अपने शरीरको छुआ। उसका फिरसे नवयौवन हो गया और तब विद्याधर राजाका बेटा आया। वह सिन्धुकेतु बोला कि थाप मेरे स्वामी हैं। और मैं आपका आज्ञाकारी सेवक । मुनि-वचनोंके द्वारा जो कुछ कहा गया था, उसे मैंने आज अपनी आँखोंसे देख लिया। दुःसाध्य निरवद्य सिद्धविधाके द्वारा मैंने आपको अच्छी तरह जान लिया। पत्ता-बारह वर्ष तक मैं यहां रहा और फलकालके समय आज विधाने मुझे पीड़ित किया। देवने तुम-जैसे लोगोंके लिए लक्ष्मी दो और हम लोगोंका उद्यम ( पुरुषार्थ ) व्यर्थ गया ॥१८॥ इस प्रकार कहकर जैसे ही वह विद्याधर वहाँसे गया, वेसे ही चार पहर बीत गये। रात बीती, सूर्य उदय हुआ और वसुपालका भाई चला । जंगलमें चलते हुए उसने एक वृक्षके नीचे बेठी हुई एक बूढ़ी स्त्रीको देखा। हाथ उठाकर, नेत्रोंको टेढ़ाकर, लोग उसे दुर्वचन कह रहे थे। राजा 'श्रीपाल' ( असे देखकर अपने मन में सोचता है कि तिनका होना अच्छा लेकिन बन्धुरहित गरीब होना अच्छा नहीं। अफसोस है कि नागरिकोंके द्वारा झगड़ा क्यों किया जाता है। बुढ़िया कहकर इसका उपहास क्यों किया जा रहा है ) उस बुढ़िया स्त्रीके छूनेपर कुमार बुढ़ियाजैसा हो गया। कुमारने अपने अंगको अपने हायसे छुआ, उसका शरीर जैसा पहले था, वैसा ही अब दिखाई दिया। उस अतिवृद्धाने राजासे निवेदन किया कि मैंने वरके चरित्रको सत्यापित कर लिया। हे देव ! उसके शरीरमें जो मैंने वृद्धरूप निवर्तित किया था, उसी प्रकार उसने उस सपको छोड दिया। तब राजाने उसके खोजनेवाले भेजे। बनमें जाते हए 'कबेरपी' के बेटे 'श्रीपाल' ने सिंहों, सोसे पूरित हैं दिशापथ जिसके तथा जिसमें चारों दिशाएं मिल रही हैं, ऐसे चतुष्पय में सोलह महाबलशाली सुभट देखे और अत्यन्त गोल सोलह पत्यर देखे। __घत्ता-उन लोगोंने हाथ जोड़कर, आगे बैठकर अत्यन्त मधुरवाणीमें कुमारसे कहा कि हे कुमार ! आप क्यों जाते हैं, इन गोछ पत्थरोंको रख दीजिए ॥१९॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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