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________________ २२. १३. ११] हिन्दी अनुवाद १२ वहांपर स्तनितवेग नामका राजा है, जो ज्योतिवेगा देवीका प्रिय पति है। अशनिवेग उसका उद्दण्ड प्रमादी पुत्र था। उसने यहां लाकर तुम्हें डाल दिया है। मैं उसकी प्रिय बहन विद्युद्धेगा हूँ। उसके द्वारा भेजी गयी मैं तुम्हें देखने आयी हूँ कि तुम जीवित हो या आकाशसे पहाइमें चट्टानपर गिरकर मर गये। वह कहती है कि मैंने रोषपूर्वक दूरसे तुम्हें देखा कि जबतक मैं तुम्हें निशाचर रूपमें मारूं, तबतक में कामदेवके बाणोंसे आहत हो उठी। ( इन्द्र-चन्द्र-नागेन्द्रको विखण्डित करनेवाले बाणसे) में सौभाग्यको भौख मांगते हैं। वह मझे दो। इा छोड़कर मैं आपकी शरण में हैं। एक बार यदि तुम मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो, एक बार यदि मेरा मुंह देख लो, तो मैं अपने जीवनका फल संसारमें पा जाऊँगी। तब उस कुमारने उसके कहे हुएका निषेध किया और कहा--"यदि तुम्हारे भाई लोग एकत्रित होकर बड़ा उत्सव प्रारम्भ करके विनयपूर्वक तुम्हें देते हैं तो मैं विवाह ( ग्रहण ) करूंगा। यह मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ। तुम्हारे इस कन्या सुलभ स्वभावसे में लज्जिल हूँ।" तब वह वेगसे रत्नपुर चली गयो। और शत्रुओंको मारनेवाले अपने भाईसे कहती है कि वह आदमी मर गया। मैंने मांस-खण्डोंको खोजते हुए गिद्धोंके झुण्डको वहाँ घूमते हुए देखा है। पत्ता-नि:श्वासकी ज्वालाओंसे दिशाओंको प्रज्वलित करनेवाली अशनिवेगकी बहन वियोगको नहीं सहती हुई, अपनो सखी मदनपताकाको वहां भेजती है कि जहां पृथ्वीको जीतनेवाला वह स्थिर वर निवास कर रहा था ।।१२।। उसने वहां जाकर उस सूभगसे प्रार्थना की कि जो इस दुःस्थित जनपद और विद्याधर राजाओंकी रतिसे व्याप्त पुत्रियोंको स्तनितवेग और पवनवेगसे रक्षा करेगा, अपनी कान्तिसे सूर्यके रथको आहत करनेवाला वह महाप्रभु श्रीपाल चक्रवर्ती उनसे विवाह करेगा। तुम्हारा रूप मुझे हृदय में अच्छा लगता है। "प्रिय विद्युवेगा कठिनाईसे जीवित है। कुमार कहता है कि तुम क्या कहती हो ? होनेवाले कर्मका उल्लंघन कौन कर सकता है। हे दुती ! तुम जाओ। मैं उस बालाका प्रियतम हूँगा । और उस बालाको लीलापूर्वक आलिंगन दूंगा। यह सुनकर दुती घर चली गयी, और एकदम दुचली हुई कुमारीको देखा। फिर वह विरहातुर वहाँ आयी कि जहाँ वह वामदेव था। रमण भावके रमसे आदें वह कुमारी अपने पहलेके तातसे सम्भाषण करती हुई। ___घत्ता-उस सुन्दर सुन्दरीको देखकर वे छहों कुमारियां एक क्षणको वनमें भाग गयी हैं, मानो सुकविकी मतिसे जड़ मतियां भाग गयी हों ।।१३॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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