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________________ ३२. ११. १४] हिन्दी अनुवाद ३२३ १० मैं उसकी रतिकान्तासे छोटी कन्या हूँ । इनमें बड़ी जयदत्ता है । मदनकान्ता और मदनावतो, जनमनके लिए सुन्दर कुमारी जयावती जेठी है और भी छठी साली बिमला है। जिसे हमारे साथ उपवन में क्रीड़ा करते हुए अशनिवेग विद्याधरने देख लिया। उसको कामुक वृत्ति स्नेहसे भंग हो गया। उसने कन्याको भौगा, पिताने. इनकार कर दिया। उसने मुनिसे पुछा कि कन्यासे विवाह कौन करेगा? पृथुबोध मुनिने पितासे कहा कि हे राजन् ! इस समय विवाहसे क्या ? तुम्हारी पुत्री बाणयुक्त श्रीपाल चक्रवर्तीको गृहिणी हो गयी है। फिर अशनिवेगने हम लोगोंको मांगा, किन्तु पिताके वचनसे वह निरुत्तर हो गया। तब जलदके शिखरके समान अपने पेरको चलानेवाला वह निष्करण हमें चुराकर ले आया और खोटे आशयवाले उस दुर्दान्तने मनमें क्रोध करते हुए हमें यहाँ रख दिया । पत्ता-हम लोग राजकुमारियां होकर भो तालपत्रोंसे अपने स्तनको ढंकती है, और अपने मनमें सन्ताप करते हए राजा श्रीपालका रास्ता देख रही हैं ॥१०॥ ११ तुम्हीं मेरे स्वामी हो, क्योंकि तुमने हमारे अंगोंको सन्तप्त किया है। नहीं तो क्या ? स्वामीके सिरपर सींग होगा। हे स्वामी ! इस गृहिणीको लो और अपने शत्रुओंसे प्रचण्ड भुजाओंसे उसका आलिंगन करो। तब वह सुभग कहता है कि यद्यपि कन्यारत्न सुन्दर है-फिर भी बिना दिये हुए वह मेरा नहीं हो सकता । एक और कुमारी वहाँ आयो। राक्षसोके रूपमें जो कहीं भी नहीं समा पा रही थी। कामदेवसे आक्रान्त उसके निकट आती हुई वह (कामदेव ) के पांचों बाणोंसे उरस्थल में विद्ध हुई भीलसे आहत हरिणीको तरह वह चंचल थी। और उस सुभगका मुख देख रही थी। उस स्वसरपर वे छहों तरुणियां चली गयीं। जिस प्रकार बाघकी गन्ध पाकर हरिणियां चली जाती हैं। दूसरीने एक प्रासाद बनाया । उसमें सोने का पलंग अत्यन्त शोभित था। श्रीपालके कानों में सरस आलाप आने लगा और श्रीपालके नेत्रयुगल मछलीकी भांति घूमने लगे। जैसे ही उस कन्याने प्रियका आलिंगन किया वैसे ही उसका कन्या लत बरम हो गया। इस दोषके कारण विद्या नष्ट होकर चली गयो। और वह चन्द्रमुखी अपने को दोष देती हुई कामग्रहस विवर्ण हो गयी। सुन्दर कुमारने पूछा कि तुम कौन हो? __ पत्ता-अचलतामें महोघरको जोसनेवाले नरश्रेष्ठ श्रीपालसे वह अपना वृत्तान्त कहती है-श्रीशिखरसे चार सौ योजन दूर और ध्वजोसे मण्डित रत्नपुर नगर है ॥११॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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