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________________ हिन्दी अनुवाद ६ वह वेताल जिसके उरतलपर सर्पोंका हार झूल रहा है। कटितलपर बँधे हुए सर्प विशेषसे जो भयंकर है, जो सफेद विरल लम्बे दांतोंवाला है, जिसने बाघके श्रेष्ठ चमड़ेके वस्त्र धारण कर रखे हैं, जिसका मुख मन्दराचल पर्वतकी कन्दराके समान है, जिसका गण्डस्थल मनुष्यों की से शोभित है, जो बालचन्द्र के समान (श्वेत) दाढसे भयंकर है, जिसके बाल जलती हुई आग की ज्वाला के समान है, जो नवघनके समान श्यामल मोर नीलकमलके समान काला है, ऐसा वह ताल आकाशगामी विद्याधर बनकर उससे कहता है कि तुमने चम्पेके समान गोरी मेरी घरवालीका पिछले जन्म में अपहरण किया था। तुझपर इस समय दुर्दान्त यम क्रुद्ध हुआ है । इस समय जीता हुआ व कहाँ जायेगा ! तब कुबेर-श्रीका ने । याद करता है कि यहाँ मैं अपने कर्मके द्वारा लाया गया हूँ। इस समय भवजलरूपी समुद्रसे तारनेवाले जिनवरके चरणकमल ही मेरी शरण हैं । तब वह पर जिसने जनवार्तासे समाचार जान लिया है और जिसने विभंग अवधिज्ञानके द्वारा सुधीजनका दुःख ज्ञात कर लिया है ऐसा जगपाल नामका यक्ष वहाँ आ पहुँचा और बोला कि मेरा कुमार अश्यके द्वारा ले जाया गया है । ३२. ७.१२] ३१९ पत्ता- वह यक्ष युवराजके लिए, जिसके कन्धे युद्धभारको धुरा धारण करने में समर्थ हैं। तथा जिसका हाथ प्रचण्ड अस्थिदण्ड मण्डित है, ऐसे दुर्धर निशाचरसे भिड़ गये ||६|| ७ यक्ष कहता है कि - हे क्रोधसे अभिभूत विद्यावर राक्षस तू जा जा । तू जलते हुए कालानल और विश्वके लिए संकटस्वरूप यमके सुखरूपी दिवरमें मत पड़ तेरी आयु नष्ट न हो, मेरे कुमारको तू मत सता। इस प्रकार अमर्षके रससे वशीभूत महाआदरणीय वह महान इस प्रकार कहता हुआ कहीं भी नहीं समा सका। राक्षसके द्वारा वह दो टुकड़े कर दिया गया। लेकिन वह व्यन्तर देव दो रूपोंमें होकर दौड़ा, उसने उन दोनों को आहत किया वे चार हुए, मानो गरजते हुए दिव्य दिग्गज हों। चारोंको आहत करनेपर के आठ हो गये, आठ आहत होनेपर गोलह हो गये, सोलहको आहत करनेपर भयंकर बत्तीस हां गये, बत्तीसको आहत करनेपर चौंसठ हो गये । चौंसठके दो टुकड़े करनेपर एक सौ अट्ठाईस हो गये। और वे भी दुगने बढ़ गये। इस प्रकार असंख्यात यक्षोंने जल-थल और नाकाशको आच्छादित कर लिया । घत्ता --निशाचरका बाहुबल कम नहीं हुआ। देव ( यक्ष ) का हृदय डिग गया, कि क्या होगा । उस कर्मको देखते हुए उसने कुमारके भविष्यको चिन्ता की ||७||
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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