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________________ ३२. ५.१२] हिन्धी अनुषाव को सुख देनेवाला माताके द्वारा हकारा आया। उसके कहने पर वे दोनों ही चल दिये और जो सज्जन थे वे उनका अनुसरण करने लगे। इतने में उन्होंने चंचल घोड़ेपर बैठे हुए एक अप्रसिद्ध आदमीको देखा, श्रीपालने उस घोड़ेको मांगा, अश्वपालने उसे धन लेकर दे दिया। पत्ता-वहाँपर वह कुमार अपने किये हुए कर्मके परिणामसे प्रवंचित हुमा। जैसे हो कुमार घोड़ेपर घड़ा, सेनाके बीचमेंसे जाता हुआ वह 'अश्व' दूर जाकर एकदम ओझल हो गया है . . HERE * आँसुओंके प्रवाह जलसे पोलो आँखोंवाले, स्वजनोंके हाहाकार करते हुए भी वह घोड़ा शीन अदृश्य हो गया। राजा वसुपाल माताके समीप आया, इष्ट-वियोगके शोकसे सन्तप्त शरीरवाला वह इस प्रकार गिर पड़ा, मानो पंखोंसे रहित पक्षी गिर पड़ा हो। शोक करती हुई माताको मन्त्रियोंने किसी प्रकार मना किया और उसे सान्त्वना दो। वे लोग वहां पहुंचे जहा कामदेवको जीतनेवाले केवलज्ञानधारी योगीश्वर थे। देवोंके द्वारा सैकड़ों बार बन्दनोय उनको वन्दना की। भक्तिसे मध्यजन आनन्दित हो उठे। कुबेरश्रीने कहा कि-खोटो आशासे मायावी घोड़ा मेरे पुत्रको ले गया है। हे ज्ञानवान् ! उसका समागम कब होगा। तब जिनवरने कहा कि सातवें दिन आये हुए बालकको तुम देखोगी। तब मुनि गुणपालको प्रणाम करके मां और पुत्र उस शिविरको छोड़कर सुमेरुपर्वतके तलभागमें स्थित हो गये। घत्ता-विजया नामक विशाल पर्वतके निकट खिले हुए वृक्षोंवाले जंगलमें शत्रुने अपना अश्वपन छोड़ दिया और भयंकर राक्षसका रूप धारण कर लिया ||५||
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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