SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१. २९. १७] हिन्दी अनुवाद ३११ उसे अपने गलेमें डालकर हे सुभट, तुम बिना किसी धूर्तताके चढ़कर और उतरकर अपना दिन बिताओ। और उसने कहा कि जब तुम इसे नियमित रूपसे करने लगोगे तभी मैं तुम्हें दूसरा काम दूंगा। पत्ता-तब विषधर हँसकर तुरन्स खस्या लाकर, बन्दरका रूप बनाकर और अपनेको .. बांधकर स्थित हो गया ॥२८॥ खम्भेके अग्र शिखरपर उठकर चढ़ता है, उतरता है, पलता है और घरतीपर गिरता है। नागदत्तने नागको इस प्रकार देखा जैसे कोई साधु सन्त ध्यानमें लगा हुआ है । लगातार वह दिनरात बिताता है। छो, विधिका विधान सबको घुमाता है ? साँप कहता है, हे मित्र, तुम मुझे छोड़ दो। प्रतिपक्षके साथ नम्रतासे बोलो। तब उसने मान छोड़ दिया और सुकेतुको प्रणाम कर प्रार्थना की कि जहाँ तुमने मनुष्य होकर भी नागको बाँध लिया, वहाँ मैं तुम्हारे साहसका क्या वर्णन करूं। तुम बुद्धि और धन दोनोंसे बड़े हो, हे वत्स, सुम नागसुरको छोड़ दो।" यह सुनकर छोड़कर डाल दिया। सुकेतुने सौपको भुक कर दिया। एक दिन सूर्यका बस्त देखकर, अपने पुत्रको अपना भवन देकर सुकेतुने गुणधर गुरुके चरणोंको सेवा की ओर तपश्चरण ले लिया। तथा मत्सरसे रहित निर्भय सुव्रता आर्याको नमस्कार कर उसकी गृहिणी वसुन्धराने दीक्षा ग्रहण कर ली।बह आवश्यक क्रियाओंका परिपालन कर मनिवर सकेत विघरगारमें भरकर श्रेष्ठ स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। उसकी पत्नी वसुन्धरा भी स्त्रीलिंगका उच्छेद कर उसी स्वर्गमें अनुपम देव हुई, सम्यक्त्वसे अलंकृत और स्त्रियोंमें, वीतरागोंको प्रणाम करनेवाली। पत्ता-भव्यजीव भरतके पिताके द्वारा विशापित अन्तिम छह नरकों, भवनवासी और व्यन्तरवासी देवोंके विमानोंमें जन्म नहीं लेते ॥२९॥ इस प्रकार सर महापुकों के गुण-भलंकारोसे पुक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महामन्य भरत द्वारा अनुमत महाकाम्पका वणिक नागदस और सुकेतु कमा सम्बम्ब नामका इकतीसवाँ परिच्छेद समास हुमा
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy