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________________ ३१. १९.४] हिन्दी अनुवाद ३०१ कहकर वह अपने भवन ले आया। राजाने उसे बहुत इष्ट माना । चाण्डालमें भी मुनियोंके द्वारा दो गयी अहिंसाका अष्टमी और चतुर्दशीके दिन पालन किया। फिर चाण्डालने चोर (विद्युत् चोर) से कहा कि किस प्रकार गुणपालने व्रत ग्रहण किये। उस सेठने अपनी कन्या । रूप और लक्षणोले सहित थी, कुबेरश्री के पुत्र वाणिजो विज्ञान, विताने कुबेरप्रिय (सेट) से कहा कि मोक्षका क्या कारण है ? हे प्रिय बताओ। उसने कहा, मैं धर्मको ही शिवका कारण मानता हूँ, अन्य किसी कारणको नहीं गिनता। हे राजन्, मैं जाऊँगा और मैं मुनिका चरित्रधारक बनूंगा ? तब उसे तीन दिनके लिए राजाने रोक लिया। उसने पुत्रोंकी रक्षा करनेके लिए किसीको खोज लिया। तीसरे दिन आता हुआ-सा दिखाई दिया । राजासे पूछने के लिए सेठ आया, उसी समय ) मक्खोके ऊपर छिपकली दौड़ी पत्ता - कहाँ छिपकली और कहाँ मक्खी ! कणोंको खानेवाली किस प्रकार भक्षित कर ली गयी। जीवको कर्म सहना पड़ता है और कोई दूसरा नहीं है ||१७|| १८ सन्तान के लिए सुख देव करता है चिन्ता कर मां-बाप क्यों भरते हैं ? सत्यवतीका पुत्र श्रीपाल पहला चक्रवर्ती होगा । देवज्ञोंने आदेश दिया। गुगपाल श्रमण मुनि होकर चला गया । कथा सुनकर चोरने शान्तिसे अपनी मतिको शान्त और संयत किया। उसने अपनी नरकायु हटायो और तीसरे नरकसे उसने पहले नरकका बन्ध कर लिया । जो सागरोंकी संख्यामें थी, वह लाख करोड़ वर्षोंमें रह गयी । श्रोपालके विवाह में वसुपालने रिसते हुए घाववाले उन दोनों ( चाण्डाल और चोर ) को मुक्त कर दिया। वह चोर मरकर भयंकर दुःखोंके घर पहले नरक में गया । बहुत दिनोंके बाद वहाँसे निकला और उनमें कुम्भोदर घरमें उत्पन्न हुआ । यहाँ रहकर मैं संयमका पालन करता है और जिनदेवके द्वारा कहे गये पर श्रद्धान करता हूँ । पत्ता-तब देवने कहा- "जिसे तुमने जन्मान्तरमें मारा था, उस यतिक्रे जोडेको देखो, ar अब भी तुम उसे क्रोधसे देखते हो १ ||१८|| १९ या क्षमा करते हो, हे आदरणीय ! स्फुट कहिए, क्या आज भी बेर अपने मनमें धारण करते हो ।" यह सुनकर मुनिने कहा- "पापिष्ठ, मैंने जो अपनेको पीड़ा दी, उससे अब मैं अपनेको निःशल्य करता हूँ और उससे हितमित वचन कहूँगा " इसपर देव बोला - "हे ऋषि, सुनिए ।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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