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________________ ३१. १७.३] हिन्दी अनुवाद निकाला । उसे मारनेके लिए ले जाया गया। पटहध्वनिसे लोगोंको इकट्ठा कर लिया। सत्यवती और कुबेरधी दुःखी होती हैं-हा ! क्या सुमेरुपर्वत डिग सकता है ? चन्द्रमा उष्ण और सूर्य क्या शीतल हो सकता है ? हा ! क्या धर्मका प्रलय हो गया है अथवा बाह र हो रद..... भी उसका भव्यका शील शुद्ध है। उस अवसरपर तलवारको उठाये हुए चण्डालको वह सौंप दिया गया। घत्ता-चाण्डालके द्वारा मुक्त वह तलवार सेठके गलेपर शीघ्र पहुंची और यमकी दूती वह खड्गलता श्वेतहारावलि बन गयो ॥१५।। 'साधु' यह कहकर, और पैर पड़ते हुए पुरदेवताने पद्मासनको रचना को, और उसके लिए मणिमण्डित स्वर्गभूमि तथा प्रातिहार्य-श्रीका निर्माण किया। निष्करुण जो साधुको मारता है वह पृथुधी भूतोंके द्वारा बांध लिया गया, मत्सरसे परिपूर्ण, और दूसरोंने निन्दा कर टक्करोंसे सिर चकनाचूर कर दिया। अनेक कोषसे भरे हुए वहाँ पहंचे जहां राजा था। उनका बहत और दिव्य क्रोष बढ़ गया और राजाको पैरोंसे पकड़कर खींच लिया। राजा कहता है कि मैंने क्या दोष किया ? लब धर्मका हित करनेवाला पिशाचगण बताता है-मुद्राका प्रपंच, दूसरेका रूप बनाना, परस्त्रीसे विरत होनेपर भी सुषिका बन्धन, गुणोजनका बन्धन और राजाको विभिन्नमति करना। उसने प्रणाम करके सत्यवतीको सन्तुष्ट किया। पतिव्रता कुललक्ष्मी कुबेरपीको शान्त कर अपनी श्रीकी निन्दा कर राजा वहां गया, जहां सेठ था। हाथ जोड़कर वह राजा कहता है पत्ता-मैंने दुष्टके कपटकी कल्पना नहीं की थी, मुझ पापीने दुष्कृत किया है। हे सुभट, क्षमा करें जो मैंने तुम्हारे चित्तको खेद पहुँचाया और कोड़ोंके आषातोंसे तुम्हारे शरीरको सताया ॥१६॥ १७ सेठ कहता है कि यह मेरा पूर्वाजित कर्म था कि जो तुम अकारण कुपित हुए। अब उस (कर्म) को नष्ट करूंगा, अब मैं तप करूंगा ! तुम्हारे प्रति ईर्ष्याभाव धारण नहीं करूंगा। प्रिय
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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