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________________ हिन्दी अनुवाद ११ कोतवालका पुत्र, एक और मन्त्री पुत्र तथा विलासी राजाको रखेलका पुत्र, ये मतवाले महागज के समान गतिवाली उस वेश्याके घर आये। उसने एकको एक दिखलाया और की भावनासे उनका मन चकित कर दिया। क्रमसे उसने वचनोंकी श्रृंखला देकर सबको मंजूषामें बन्द कर दिया । भाग्यके द्वारा पृथुधी भी वहाँ लाया गया । रतिकी याचना करनेवाले उससे युवतीने कहा- "ओ तुमने पुण्यरूपी धान्यका आस्वाद लेनेवाली अपनी बहन के लिए मेरा हार दे दिया है, यदि वह लाकर तुम मुझे दोगे, तो में भी तुम्हें रतिरमण दूंगी।" मंजूषाका साक्ष्य बनाकर पृथुषी घर गया। दूसरे दिन सूर्यका उद्गम होनेपर जिस प्रकार उसने उत्सव में हार ग्रहण किया था और जिस प्रकार लोभसे पुनः वह ठगा गया और सुरतिकी आकांक्षासे जिस प्रकार उसने दे दिया, उस प्रकार सारा वृत्तान्त राजासे कह दिया । उस मानिनीने मन्त्रीको नीचा दिखा दिया, वह निर्जीव साक्षी - गवाह ( मंजूषा ) ले आयी । ३१. १३. ३] २९५ बत्ता -- तत्व समर्थ दासियोंने अपने हाथोंमें अंगारे लेकर कहा - है मंजूषे ! थोड़े में साफसाफ कहो, आगके मुखमें मत जाओ ||११|| १२ तब लोके वलयोंसे विभूषित मंजूषाने घोषणा की कि गत दिवस तुमने हार देना स्वीकार किया था । तुम कठोर कठोर यह मुझसे क्या कहते हो ? सुन्दरीका आभूषण दे दो। हे मन्त्री, तुम नरककी घाटीमें मत पड़ो। राजाको आश्चर्य हुआ । उसने अपना माथा पीटा और कहा क्या कहीं का भी बोलता है। मंजूषाका मुँह खोल दिया गया, परवनका हरण करनेवाला नष्ट हो गया। ये तीनों बिट उसमें से निकले। स्त्रियोंके द्वारा कौन-कौन जड़-बुदघू नहीं बनाये जाते ? राजाने सत्यवती से पूछा । शुद्धमति आदरणीय वह स्वीकार करती है जिसे स्वर्णध्वज प्राप्त नहीं है ऐसे अपने भाई पृथुको मैंने हार दिया था । पत्ता- तब उस दुष्टको दुर्वचनोंसे भर्त्सना कर और अपने मन्त्रीको डांटकर राजाने वह आभूषण बुलवाया और उसे दिलवा दिया ||१२|| १३ मानिनोका आनन्द बढ़ गया। परन्तु उस राजश्रेष्ठके मनमें क्रोष बढ़ गया। बाद में उसने aust कल्पना की और इसे सहन न करते हुए उसने कहा, "रखैल, तलवर और मन्त्रीका पुत्र ये
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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