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________________ ३१. १०.१०] हिन्दी अनुवश्व धत्ता-वारण ( गज ) दुर्जयका निवारण करनेवाला' और अणुव्रतोंका धारण करनेवाला हो गया है, इस प्रकार उसे बुद्धिमान् जाना, और सेठका प्राणसे भी अधिक सम्मान किया ॥८॥ दूसरे दिन राजाका नवतोरणक नाट्यमाली नट घर आया। और उसने रसविभ्रम हाव और भावोंसे सहित अपनी कन्यासे नरय करवाया। तब राजाने किया है तिलक जिसने ऐसी उत्पलमाला नामक वेश्यासे पूछा । कामरूपी सपके विषसे उद्विग्न और सेठका स्वरूप, अपने मनमें सोचती हुई उस मुग्धाने राजासे जो कुछ कहा उसने उसे अपने मनमें रख लिया। अपने घर जाकर उस वेश्याने उस सेठके घर दूती नियुक्त कर दी। वह, उस सुभग ( सेठ) के प्रतिवचनोंसे आहत हो गयी। प्रणतांग नरकसे उसकी निवृत्ति की। सखीने उस हंसगामिनीको समझाया कि दुर्लभ लभ्योंमें प्रेम मत करो। तब दुर्लभ कामदेवके बाणोंसे आहत वह प्रवर विलासिनी कहती है, "हे सखी, चित्त दु:सस्थित है । वह मेरा नया-नया प्रिय हुआ है। हे सखो ! तुम पंचमकी तान गाओ, यदि वह प्रिय किसी प्रकार नहीं मिलाती हो । मैंने कह दिया कि मैं निश्चयसे मरती है । तुम मेरे परोक्षमें रोओगी। पत्ता-सखी कहती है कि आठवें दिन वह जिनभवनके आँगनमें अपने हृदयमें जिनवरको धारण कर कायोत्सर्ग धारण करता है ||५|| "तब संचित किया है ध्यान रस जिसने, उसे उठाकर में अवश्य ले माऊंगी।" इस प्रकार उन दोनोंने आलोचना की। इतने में पाठवां दिन आ गया। वह धीर जहाँ अपने हाथ लम्बे किये हुए स्थित था, सखोने तुरन्त जाकर उसे उठा लाकर बालिका उत्पलमालाके लिए समर्पित कर दिया। उस मुग्धाने कामकी सब चेष्टाएँ की परन्तु पर स्थित रहा, जैसे काठका बना हो । उसने यह दुर्वचन कहा कि यह नीरस है। वह जहां था, उसे वहीं स्थापित कर दिया। यह बात राजाने भी सुनी और वणिक्षरकी दृढ़ताकी सराहना की। नरको छोड़नेके लिए वेश्याका उपहास किया गया । यह ब्रह्मचर्य धारण कर अपने घरमें स्थित हो गयी। पत्ता-कोलिक सूत्रसे मच्छर बांधा जा सकता है, हाथी नहीं रोका जा सकता। वेश्यामें मूर्खजन गिरते हैं विद्वान्का यहां मन खण्डित हो जाता है |॥१०॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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