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________________ २९१ ३१.८.१०] हिन्दी अनुवाद __ पत्ता-जहां रमणीजन कोड़ा करतो हैं, ऐसे स्वर्णकारके घरमें तुमने सूर्यको जीतनेवाले सात माणिक्य हरणकर रखे थे ॥६॥ ४ तलवार और भालोसे जिनके हाथ कांप रहे हैं, ऐसे राजपुरुषों को वह घर बता दिया। ने सुनारकी की सूचनासपिपिपारित वह मांगने पर भी हीरे नहीं देता। राजाने भोजनकसे पूछा कि उसकी गृहिणीको अभिज्ञान चिह्न बताकर घरमें रखे हुए मणि ले आओ। या तो किसी प्रकार गोबर खाओ या सब धन दो, या पहलवानोंका मुष्टि प्रहार सहो। इस प्रकार विमति (सुनार ) के लिए दण्ड सोचा गया। मल्लने आघातोसे उसे हटा दिया, वह गोबर भी नहीं खा सका, अपने चित्तमें चौंककर वह धन ढोता है। प्रतिवादीके द्वारा तोन काम कराये जाकर, वह विमति मरकर दुर्गतिको प्राप्त हुआ। तुम फिर चण्डालके पास ले जाये गये। उसने व्रत ले रखा था, इसलिए उसने मारा नहीं। राजा दोनोंसे नाराज हो गया। दोनोंको बषवाकर उसने निविड़ अन्धकारवाले विवरमें हलवा दिया। तुमने कहा-हे चण्डाल, प्राणोंका हरण करनेवाले मरणको मैं क्यों नहीं पहुंचाया गया ? पत्ता-तब चण्डालने कहा-दुविलसित कर्मको सुनो कि जो मैंने संसारमें पाया है और अपने शरीरसे मोगा है || यहां गुणपाल नामका राजा था । उसको रानी कुबेरी और सत्यवती थी। पृथ्षी और बसु नामक, षोरमनवाले उसके दो भाई थे। कुबेरश्री का एक ही भाई था, जो गुरुत्वमें सुमेरु पर्वतके समान था। जब वे अपने घरमें रह रहे थे तब राजाका श्रेष्ठ हाथी सगंवर क्रीडा कर रहा पा। वनमें समवसरण में जिनवरकी ध्वनि सुनकर वह बोध गुणी हो गया। उसने हिंसासे निवृत्तिका सहारा से लिया । जीव देखकर, वह धीरे-धीरे पग रखता, अविशुद्ध कौर को वह इच्छा नहीं करता। तब महावत राजासे कहता है कि प्राणप्रिय गज कौर नहीं खाता। तब राणाने कुबेरप्रियसे कहा। उसने उसे मांसका पिण्ड बताया। उत्तम विचारवाला गज उसे देखता तक नहीं । फिर उसे खूब अन्ल दिया गया, तो उस गजराजने उसे स्वीकार कर लिया।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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