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________________ [१९. ४, ८ महापुराण घरसंगपमाणु जेई गहिउ रयणीभोयणविरईसहिउ । दिसिविदिसागमणमाणकरणु भोगोत्रभोयसंखाधरणु । विरमणु अणत्थदंडासियउं भाचियउं जेहिं जिणभासियउँ । घत्ता-सामाइ पोसह अतिहिपरिगहु कामकोहपरिहरणं || किउ जेहि पसत्यहि पवरघरत्यहिं सहुं सण्णासणमरणे ||५|| 5 : ते भरहें विप्प परिद्वविय कर मउलिवि सई सिरेण णविय । उववीयहु केरउ चिंधधर दसणरि घल्लिउ एक सरू। वयचंति णिरूविय दोणि सर सामाइयदि पुणु तिणि सर । सेसा यंत्र हासिलर सभित्तविरत्तइ पंच सर । अणिसाभोयणि जेडुमाण सर दढबंभचेरैधरि सत्त सर। आरंभविवजिइ अट्ठ सर अपरिग्गहि कय पवसुत्त सर । अणुमोयणमुक्का दह जि सर एयारह सर हयमयणसर । उरिट्टचायकारिहि विडिय ए दियवर राएं सुहुं णिहिये । तयु बंभ जेण घोसंति जए बंभणकृलु संठिउ तेण वए । घत्ता-धिरु सञ्चु जि मागुसु पुणु णीई वसु रिसहें खत्तु पर्वत्तिक । जिणपुजाधारन धम्मपियारउ भरहेण वि फज सोत्तिल ।।५।। वणि वाणिज्जारउ जाणियां किसिया हलधार भाणियर। सो सोत्तिउ जो जिणवरु महइ सो सोतिर जो सुतचु कहा। सो सोत्तिष्ठ जो ण दुद भणइ सो सोत्तिउ जो उ पसु हणइ । सो सोत्तिउ जो दियेएण सुइ सो सोत्तिस जो परमत्यरुइ । सो सोक्ति जो णं मासुगमइ सो सोत्तिउ जो ण सुयणि भसइ । सो सोत्तिउ जो जागु पहि थवइ सो सोति जो सुतवें तवइ । सो सोत्तिउ जो संतहुं वइ सो सोत्तिउ जो पण मिच्छु चवइ । सो सोसिउ जोण मजु पियइ सो सोत्तिउ जो चारइ कुगइ । सो सोत्तिउ जो जिणदेसियउ पण्णासतिकिरियहिं भूसियन । घता-जो तिलकप्पासई दवविसेसई हुणिवि देव गह पीणइ ॥ पसु जीव ण मारइ मारय वारइ परु अप्पु वि समु जाणइ ।।६|| ५. B°गमणकरणु । ६. MRP भोग । ७. MBP समहि । ५. १. MB उदुमाण 1 २. P चेरु परि । ३. MBP संमिहिय । ४. MBP तब बंभु । ५. MP पत्ति यज । ६. MBPK पावियारउ । ६. १. M सुप्तच्च । २. P पसु गउ । ३. MBP हियवयणु सुणह । ४. M परमत्य मुण; P परमत्यु मुणह । ५. B मासु ण ।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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