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________________ २९. २३. १४ ] हिन्दी अनुवाद २८३ लो गयो । विषम विषकी आगसे जलते हुए उनके शरीर धरतीपर गिर पड़े। किंचित् वेदनासे जिनेन्द्रको याद करते और मरते हुए इन्द्रका आगमन देखा। भोगकी आकांक्षासे निदान कर इन्होंने इन्द्रकी देवियोंका स्थान ग्रहण किया। हे राजन्, ये अभी-अभी उत्पन्न हुई हैं इसी कारणसे ये दोनों सुरकन्याएं अपने पतिके पीछे आयों । इनका गतजीव तनुयुगल आज भी पृथ्वीपर पड़ा हुवा है। लोगोंने उसे देखा। पत्ता-इस प्रकार सुलोचना भरतके चरणोंमें अपना शरीर झुकानेवाले तथा कान्ति और प्रतापसे अजेय पुष्पदन्तके ( सूर्य-चन्द्र ) के गुणोंसे ऊंचे उस जयसे कहती है ।।२३।। सठ महापुरुषोंके गुण और अलंकारोंवाले इस महापुराणमें महाकवि पुम्पदम्त द्वारा विरचित और महामन भरव द्वारा अनुमान महाकायका जिनमित्त प्रपोजली फाल नामका वीसा परिच्छेद समाप्त हुआ ..
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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