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________________ भूमिका वर्ण व्यवस्था प्रस्तुत खण्ड कविके 'नाभेप परित' का उत्तरार्ध है जिसमें दिग्विजयके पाब, एक पक्रवर्ती सम्राट्के रूममें भरतके पासनसे लेकर तीर्थंकर ऋषभ आदिके निर्वाण तकका कपानफ सम्मिलित है। चूंकि ऋषम तीर्थकर, कर्ममलक संस्कृति के आदि संस्थापक है। उनके द्वारा स्थापित समाजव्यवस्था और प्रशासन तन्त्रको भरत विस्तार करता है। महापुराण के अनुसार ऋषमने क्षत्रिय, वैश्य और वाद-तीन वोकी स्थापना की थी। ब्राह्मण' वर्ण की स्थापना बाद में उनके पत्र चक्रवर्ती भरतने को। वैदिक मतके अनुसार ब्राह्मणों का जन्म सबसे पहले ब्रह्माके मुखसे हया। यह बात दिलचस्प है। एक दिन भरत सोचता है कि धान के बिना घन शोमा नहीं पाता, उसी प्रकार जिस प्रकार हमसे आहत कमलवन । प्रशासन सम्बके द्वारा संचित धनको शोभा बढ़ाने के लिए भरत बुद्धिमान् सुपावोंको खोजकर उन्हें दान देता है। इसका कहना है कि धन मरनेपर एक भी कदम साथ नहीं जाता। "धणू मुयहो पर विण गच्छह । 19/! ब्राह्मण कोन वह दोनों के उद्धारमें धनको सार्थकता मानता है। भरत क्षत्रियों को बुलवाता है और उनमें जैनधर्मक नियमोंका पालन करनेवाले धार्मिक क्षत्रियको ब्राह्मण घोषित करता है। ब्राह्मण को परिभाषा करते हुए भरत दूसरी बहुत-सी बातों के अलावा कहता है : जो हिल कपास और द्रव्य विशेषौंको होम फर ग्रहोंको प्रसन्न करता है, पशु और जीवको नहीं मारता, मारनेवालोंको ममा करता है, जो स्व और परको समान समझता है । ( वस्तुतः यह कविके समय के विचारोंको झलक है जब सामन्तवाद अपनो चरम सीमा पर था)। कविक ममय ऐसे लोगोंको जैनदीक्षा देने की प्रथा यो जो हिसासे विरत थे और जैन तीर्थंकरों में श्रद्धा रखते थे। उन्हें न केवल वर्णाश्रममें सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया अपितु उन्हें सुन्दर परिसम्पन्न कन्याएं अलंकृत करके दी गयीं, उन्हें श्रो-सुखसे भरपूर परतीर दिये गये, पानी से सिचित जमौने दो गयीं, उन्हें मणि, रस्त, मुकुट, फटिंसूत्र, कड़े, घड़े-भर दूध देनेवालो गायें, देशान्तर करसहित धरतो अंग्रहार नगर आराम ग्राम सीमाएं और सरोवर प्रदान किये गये। 19/7. ऋषभकी आलोचना लेकिन राजा भरत खोटा सपना देखता है और उसका फल पूछने के लिए तीर्थकर ऋषभके पास जाता है। और दुःस्वप्नके साथ 'बाह्मण वर्ण के निर्माणपर उनकी राय जानना चाहता है ! ऋषम भरतके कार्यका समर्थन नहीं करते। वह कहते हैं-“हे पुत्र, तुमने यह पापकार्य क्यों किया, क्योंकि द्विजवंश कुत्सित न्याय और नाशका कारण होगा? वे पापोंका समर्थन करेंगे" 199. भविष्य कथममें वह भावी मादि महापुरुषों के होने की घोषणा करते हैं । उनके अनुसार दुषमाकाल में उन्हों सद बुराइयों, उत्पात, नसिक पतन और अभान्तिका बोलबाला होगा, जिनका उल्लेख हिन्दू पुराणों में कलियुगके नामसे मिलता है । [२]
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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