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________________ २६४ महापुराण पविखहिं पसुहृ वि पेम्मु एयदृश् णरह ण किं विरहें मणु फुट्टइ।। पुणु तहिं पुखलवइदेसंतरि जीवदयाहलेण सुहसुंदरि । रययसेलि खगदाहिणसे ढिहि सिरिहि णयरिहि मोक्खं णिसेणिहि । विणयरगइ णिषसइ खयरेस तेएं णं पञ्चरखु दिणेसरु । बहु ससिपहदेविनि बुद्ध प्रदाता शिक्षाका तेत्थु जि गिरिवरि उत्तरसेढि हि गउरीविसयभोयपुरुरूढि हि । चडियउ तहिं राणउ विज्जाहरु । __ मारह माइविय हि देविहि बरु । सा रइसेण मरिवि तहिं पक्खिणि ताहं बिहि मि हुई णं जक्खिणि । धूय पसिद्ध पहावइ णामें रूवें सलाहि जिइ सा कामें। गयउ कहिं वि णंदणवणकीलइ दिट्ठ कवोयमिहुणु तहिं लीलइ । तेण हिरण्णवम्मणामाल परमंत्र सुमरिवि लिहियज बालें। पडि जं वित्तउ जम्मकहाण पेक्खिरूपविरदयसमाण उं । घत्ता--कैद पिउणा पवरसयंवरए ताइ मयपिछइ लक्खिन ।। पारावयजुयलल णियणियडे संचरंतु सुणिरिक्खिउ ।।५।। णियभवु बुझिवि णिवडिय महियलि सिंघिय पाणिएण सिरि उरयलि। रइसेणाचरि मज्झ खामिय सा रइवरविरहें आयामिय । कंचुइणा णरवइ विषणवियउ दुहियहि देड्ड दुरोएं खवियउ । होउ सयंवरेण किं किनइ आउ आउ खगवह जाइजइ । दइयई चित्तपटु पट्टाविज सो वि ताइ णियहियवइ भाविउ । मंदेरि जायवि गइरणु मंडिल फुल्लदामु जं सई तेहि छनि । सुरगिरि परियचिवि द्धाइय खयरह अग्गइ कुंरि पराइय । लइयउ तं जाव सुरु ण पाव पुत्तिहि केरी गैइ को पावद। जाम जणशु हरिस कंद इय३ मंतिवयणु अवलोयघि मुइयउ। खेघरणियरु जाप छुडु जित्तर ताप हिरण्णवम्मु तहिं पत्ताउ । घत्ता-पुणु माल पञ्जिय मंदरहो बिणि वि सह धावंतई ।। विदई फणिकिणरससिरविहि तरितं पयाहिण देई ।।६।। ५. १. MB उसिरहिं । २. MBK सोक्स । ३. K घडिउ । ४. MB णं । ५. MB पक्विणिभवधि रक्ष्यसंमाण; K पविखरूवु विरश्य । ६. MB कय । ६, १. M3 मंदरु । २. MB ज तहि सई छडिउ । ३. MB कुमरि । ४, MB को गद ।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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