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________________ २९. २७.१३] हिन्वी अनुवाद २५७ २३ हे राजन् ( लोकपाल ), तुम्हारे पिताने जो मन्त्री रखा है, उसको देखनेसे हमें शान्ति नहीं मिलती। विगलित इन्द्रियोंवाला वह क्या काम देखेगा? अरे, वृद्धोंको कुछ भी काम नहीं देना चाहिए । वह हम लोगों को भकुटियोंके बीच दृष्टिपथमें न आये । वह सेठ तबतक अपने घरमें रहे। राजा भी कुमार था और मन्त्री भी कुमार था। दोन भो व्यक्ति योवन में विकारशोल होता है। तब राजाने पण्डितोंकी परम्पराको देखनेवाले वृद्ध मन्त्रीको घर मानेसे मना कर दिया। अपरिपक्व बुद्धि और कीड़ा करनेके स्वभाववाला यह राजाधिराज शिशुमन्त्रियों के साथ दूसरे दिन नन्दनवनमें प्रविष्ट हुआ । वहाँ उसने लाल कान्तिवाला बावड़ी-जल देखा। राजाने हंसकर चपलमतिसे पूछा कि यह पानी किस कारणसे लाल है ? पण्डितोंके द्वारा कही गयी विशिष्ट बुद्धिसे रहित विपुलमतिके पुत्र चपलमतिने प्रत्युत्तर दिया कि बावड़ीके तलमें मणि रखा हुआ है, उसकी कान्तिसे जल लाल दिखाई देता है। तब संशय रहित उन लोगोंने सैकड़ों घड़ोंसे बावड़ीका जल बाहर फेंक दिया। समूची बावड़ी ऐसी दिखाई देने लगी मानो कोचड़के तलभागमें लोटनेसे चंचल, क्रीड़ा करता हुआ सुअर स्थित हो। परन्तु उन्हें माणिक्य उसी प्रकार दिखाई नहीं दिया, जिस प्रकार अत्यधिक मोहसे अन्धे लोगोंको जिनवरके वचन दिखाई नहीं देते। अज्ञान पूर्वक क्लेशसे सिद्धि नहीं होती। वे घर गये। वहां मन्त्रीकी बुद्धिको फिर परीक्षा की। पत्ता-अत्यन्त गर्दीली प्रणयपूर्वक कोपवाली पत्नी वसुमतिने रात्रिमें पैरोंपर पड़ते हुए प्रेम करनेवाले राजाको सिरमें पैरसे आहत कर दिया ॥२६॥.................... मण्डलित मुकुटोंकी कान्तिके समान शोभित, प्रभातमें आसन पर बैठे हुए, राजासे उन तरुण मन्त्रियोंने भी कठोर शब्दोंमें कहा कि जिसने तुम्हारे सिरपर लातसे प्रहार किया है, हे राजन्, उसके पैरको काट दिया जाये । यह वचन सुनकर विमलवंशका वह राजहंस अपना मुंह नीचा करके रह गया कि मेरे सिरकी चूड़ामणि, कामदेवकी शरण सुन्दरीका चरण कैसे खण्डित किया जाये ? जिसके घरमें महान् अविवेक रहता है, उसके धरमें लक्ष्मी बड़ी कठिनाईसे निवास करती है। अत: जिसे समग्र त्रिवर्गको पहवान सिद्ध है, ऐसा वृद्ध संग ही जगमें अच्छा है। यह विचारकर, अपने कुलरूपी कमलके लिए सूर्यके समान कुबेरमित्रको उसने बुलवाया और पूछा, पानीका वह लाल होना और जो सिरमें पादाप्रसे आहत किया गया था। यह सुनकर आदरणीय कुबेरमित्रने कहा-हे देव, पानीका लाल होना सुनिए धत्ता-रसके लालची गृद्धके द्वारा छोड़ा गया मणि तटके वृक्षपर स्थित है। उसकी कान्ति फैलनेपर लोग जलको लाल देखते हैं ॥२७॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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