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________________ २९. २९.१२] हिन्वी अनुवाद २५५ २४ पुत्रकी कन्यामें अभिलाषा जानकर वणिक्ने उसका विवाह प्रारम्म किया। नन्दनवनमें जनसुन्दर नगर और अपने कुलयक्षकी पूजा कर, उसने सुन्दर खायोंसे भरे हुए बत्तीस पात्र फेला दिये। उनमें एकमें पाँच माणिक्य रखे हुए थे, जो उसे ले ले वह उसका पति होगा। प्रियदत्ता बादि बत्तीस ही पुत्रियां वहां आयीं। सेठने सभीके लिए आभूषण, विलेपन और वस्त्रादि दिये और यह कहकर कि अपनी पसन्दकै षड़े ले लो, उसने भक्ष्य पदार्थोंसे भरे घड़े बता दिये। तब बहुभोज्यसे भरा एक-एक स्वर्ण पात्र एक-एकने ले लिया। रत्नोंसे भरा घड़ा प्रियदत्ताके हाथ लगा, भवितव्यका मार्ग कौन लोघ सकता है ? गुणवती, यशोवती, नामावली, शुभसखी प्रजापालकी पुत्रियोंने यह भक्ष्यपदार्थोसे भरा स्वर्णपात्र नहीं लिया। एक क्षणमें उनका मन संसारसे विरक्त हो गया। पत्ता-(वे कहने लगी ) अच्छा है पशुओंसे मुखर पर्वतरूपी घरमें प्रवेश कर तप किया जाये । सुधिसम्मान और दानके लिए, हे सखी कलह नहीं करनी चाहिए ।।२४॥ ૨% राजभवनके निकट स्थित जिनमन्दिर में अमृतवती और अनन्तमती आर्थिकाओंके पास उन कन्याओंने नगाड़ोंकी मंगल-ध्वनियोंके साथ तप ग्रहण कर लिया। सुधीजनोंका उत्साह बढ़ानेवाले उस वणिकपुत्रका प्रियदत्ताके साथ विवाह कर दिया गया । व्रतोंका पालन करनेवाला लोकपाल मरकर प्रजापालका गुणवान् पुत्र हुआ। देवश्री देवी मदमाती चालसे चलनेवाली घनवतीकी वसुमती नामकी पुत्री हुई। पिछले जन्मकी पत्नी वह ( वसुमती ) उसको (प्रजापालके पुत्रको) दे दो गयी। फिर दोनों प्रेमपाश में बंध गये। पुत्रको अपनी कुल-परम्परामें स्थापित कर राजाने (प्रजापालने) भी मुनिव्रत ले लिये। कनकमाला आदि देवियाँ भी संन्यास लेकर स्थित हो गयीं । और भी जो परिजन थे वे भो प्रवजित हो गये। जो कोमलमतिके लोग थे वे सब सगर्व घरमें रह गये । कुबेरमित्र नामका एक बूढ़ा मन्त्रो हो ऐसा था, जो तरुणोंके लिए शत्रुके समान था। पत्ता-कुमति चपलमति ( तरुण ) कहता है कि न हम हँस पाते हैं और न खेल पाते हैं। वृद्धावस्थाको प्राप्त यह अप्रशस्त मनुष्य क्षुब्ध होता है ॥२५॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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