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________________ हिन्दी अनुवाच ११ उस चन्द्रमा के हास्य के समान सुलोचनाको इस प्रकार स्तुति कर गंगादेवी अपने निवास स्थानके लिए चल दी । तब गिरीन्द्रकी हुँच गया। सुखपूर्वक सप्तकात गजेन्द्रको प्रेरित कर राजा जय गया और हस्तिनापुर करते 'हुए जब बहुत समय बीत गया, जब प्रचुर प्रेम और सुखका संयोजन करनेवाली सुलोचना देवीके साथ एक दिन वह दरबार में बैठा हुआ था तब आकाशमें उसने विद्याधर की जोड़ी देखी। 'हे प्रभावती देवी तुम कहो' यह कहता हुआ और जन्मान्तरकी याद करता हुआ राजा मूति हो गया । तब हे स्वामी, हे स्वामी, इस प्रकार विलाप करती हुई कुलपुत्रियों और पण्य स्त्रियों के द्वारा चन्दन मिश्रित जलसे सींचा गया, ਚੰਦਨ चमरोंकी हवासे वह आश्वस्त हुआ । कबूतरके जोड़े को देखनेसे स्नेहका अनुभव होनेके कारण प्रिया सुलोचना भी मूर्च्छित हो गयो । हा रतिवर हा रतिवर - यह कहती हुई, वह निःश्वास लेती हुई फिरसे उठो । “मैं रविसेना कबूतरी थी, पूर्वजन्म की कुलपुत्री तुम्हारी दासी, और तुम रतिवर कबूतर थे, इसमें जरा भी भ्रान्ति नहीं।" यह कहती हुई वह प्रियके गलेसे लग गयी । २९.१२.१३ ] २४३ पत्ता- कहाँ वह राजा कहाँ वह रतिवर कपटसे ही प्रिय बनाया जाता है ? जयकी पत्नीकी सौतने कहा कि कैतव ( छलकपट ) से लोग नाशको प्राप्त होते हैं ||११|| १२ जनमनके सन्देह निवारणमें आदर रखनेवाले नागर अवधिज्ञानके नेत्र वाले सोमप्रभके पुत्र जानते हुए शुभभावनासे प्रियासे पूछा। पुराना वृत्तान्त पूछते हुए पतिसे सुलोचना अपना चरित कहती है- " इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में विशाल घरोंवाला पुष्कलावती देश है । उसमें विजय पर्वत में स्थित धान्यकमाल वनके निकट बसा हुआ शोभापुर नामका नगर था। उसका राजा प्रजापाल था । वह अपनी देवश्री देवीका अत्यन्त अनुरागी था । जिसने चरणकमलोंके परागकी वन्दना की है, ऐसा उसका प्रसिद्ध शक्तिषेण नामका सामन्त था । अटवीश्री गृहिणीके द्वारा आलिंगित पशरीर वह ऐसा लगता था मानो रतिसे विभूषित कामदेव हो। कहीं घूमते हुए लक्षणोंसे प्रशस्त केवल एक बालक उसे प्राप्त हुआ। सामन्तने उससे पूछा है कामदेव के समान शरीरवाले, तुम किसके पुत्र हो ? बचपनसे हो तुम धरतीपर क्यों घूम रहे हो ? यह वचन सुनकर बालकने कहा पत्ता- मैंने घरकी उपेक्षा की, उसकी रक्षा नहीं की । मैं बच्चा था, बुलानेपर चला गया था। परन्तु कठोरवाणी कहनेवाली माँने घरसे निकाल दिया || १२ ||
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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