SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८, ३६.३२] हिन्दी अनुवाद फिर रात्रिके जाने और सूर्योदय होनेपर जयके लिए संघर्ष करनेवाले नगाड़ोंके शब्द होने लगे। यममुखकी तरह रोद्र, हरिचन्दनसे आई गरजते हुए हाथी, हिनहिनाते हुए अश्व, हकि जाते हुए रथ-समूह, सन्नद्ध योद्धा, हिलती हुई पताकाएं, चमकती हुई तलवारें। धरतीके अग्रभागको कपाती हुई सेनाएं भिड़ गयीं। तब युद्ध में समर्थ एक और रथपर बैठे हुए, मनुष्योंके सिर काटते हुए, हाथी-घोड़ोंको मारते हुए, दानवोंको ध्वस्त करते हुए लक्ष्मीवतोके पुत्र जयकुमारके दूसरोंके प्रागोंका अपहरण करनेवाले, प्रहरणोंकी, शंकासे रहित आठ चन्द्र विद्याधरोंने, उत्पन्न है गर्व जिसे, ऐसो विद्याके प्रभावसे छिन्न-भिन्न कर दिया । कौन-कम्पण-धनएन-मसल-चाप और . चकोंको चूर-चूर करके छोड़ दिया। शस्त्रोंके नष्ट हो जानेपर चित्तमें समर्थ, सहायताको इच्छा रखनेवाले पुण्यवान्, धन्य और वीर जयकुमार राजाने शरमेघोंको जीतनेवाले घरमें जिसे सिद्ध किया था, उस नागराजका स्मरण किया। वह शीघ्र अवतरित हुआ। वह नागपाश और युद्धमें तीव्र दिव्य अर्धेन्दु उसे देकर एक क्षण नागिनीलोक चला गया। तब विजयशील सोमप्रमके पुत्रने ज्वालाएं छोड़ते हुए दिशाओंको जलानेवाले अग्निके समान, नागके द्वारा दिये गये बाणसे रथके मुखभाग और घुरा सहित सारथियोंको जलाकर, जिसमें ध्वजसमूह ध्वस्त है, शत्रुओंके घर नाच रहे हैं, गृद्धकुल परिभ्रमण कर रहा है, ऐसे भटयुद्ध में प्रवेश कर उसने आठों ही चन्द्रमाओंको तुरन्त बाँध लिया, कर शत्रुओंको सन्त्रस्त करनेवाले नागपायासे । क्रोषसे जाल चक्रवर्तीक प्रिय पुत्रको पकड़ लिया।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy