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________________ २८.२९.३] हिन्दी अनुवाद २१९ ऐसे अनुचर नहीं थे जो मारे न गये हों, ऐसे राजा नहीं थे जो विदीर्ण न हुए हों, ऐमा छत्र नहीं था जो छिन्न-भिन्न न हआ हो. ऐसा वाहन न था जो क्षत न हआ हो. ऐसा रथवर नहीं था जो भग्न न हमा हो, ऐसा विद्याधर नहीं था जो आकाशमें न गया हो। जब पक्षियोंके पंखोसे उड़ाया गया, मग्गणों ( मांगनेवाले याचक और तीरों ) के द्वारा कृपण की तरह तजित, फूटी हुई कंचुकी और फूटे हुए मर्दल ( मृदंग ), टूटे हुए कवच और खुले हुए बालोंवाला आघातोंसे घूमता हुआ, समूह छोड़ता हुआ, चक्रवर्सी पुत्रका सैन्य भाग खड़ा हुआ तब समरके लिए उत्सुक, अप्सराओंको हंसानेवाला, अपने भाईको हारपर ईर्ष्या धारण करता हुआ बाहुबलिदेवका पुत्र पीघ्र ही सोमवंशके तिलक ( जयकुमार ) के सम्मुख आया। भुजलिसे लगा हुआ, महाभुज राजा अनन्तसेन भी अपने अनुजके साथ आया दिव्य सैकड़ों लक्षणोंसे अंकित शरोरवाले पांच सो कुमारोंके साथ। घसा--पुरुदेवके पुत्रके पुत्रोंने जब कुमार जयको सब तरफसे घेर लिया, तब अपने एक हजार भाइयों के साथ हेमांगद आकर बोचमें स्थित हो गया ||२७|| वहां एकके द्वारा एक न अस्त किया जाता, न काटा जाता, और न भेदन किया जाता, न एक दूसरेको मारा जाता, मानो जैसे लोभोके भवन में विह्वल समूह हो। वहां शस्त्र आते परन्तु निरर्थक चले जाते । जो चरम शरीरो होते हैं, वे युद्ध में नहीं मरते । मानो महामुनि ही युद्ध में स्थित हों। मेघस्वरका जलता हुआ सरजाल कुमार अकोतिके ऊपर आगकी तरह पड़ता है। आठ चन्द्रकुमारोंकी विद्याओंसे प्रतिस्खलित होकर, इस तीर समूहकी फल और पुंसके साथ पीठ तक नष्ट हो गयी। इस बीचमें असहायोंके सहायक विद्याधर राजाका मुख देखकर कुमार कहता है-"तुम धवल बैल हो, गरियाल बैल नहीं, हे मामा, अब तुम्हारा अवसर है। सुनमि, तुम मेरे वैरी जयको नष्ट कर दो।" तब उसने भो युद्ध में दुश्मनको ललकारा, "हे कान्ताके मोह समुद्र में डूबे हुए, हे मेघेश्वर ! तू मूर्ख है। तूने राजाके पुत्रके विरुद्ध तलवार क्यों खींची? हे द्रोही, तु गुरुओंकी विनयसे पतित हो गया । भाग मत, मेरे सामने आ। देखें, अपने तीखे तीर प्रेषित कर।" इसपर राजा जयकुमार हंसा कि ऐसा कहते हुए तुम आकाशसे क्यों नहीं गिर पड़े ? पत्ता-परस्त्रोके प्रमुख कारक (करानेवाले ) तुम हो, अर्ककीर्ति स्वयं कर्ता है । मैं न्यायमें नियुक्त हूँ और इस धरतीतलपर अपने स्वामीके चरणोंका भक्त हूँ ॥२८॥ इस प्रकार कहकर उसने धनुषका मास्फालन किया। जैसे काननमें सिंह गरजा हो । मानो यमका नगाड़ा बजा हो । मानो विश्वको निगलने के लिए काल हंसा हो । सुरनर और
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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