SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८. २७.५1 हिन्वी अनुवाब विषधारण करनेवाले विषधर थे, पांचों ही मुकुटबद्ध युद्धसाथी थे। पांचों ही मानो भयंकर लोकपाल थे। पांचों ही मानो पांच सिंह थे। शत्ररूपी तकओं और मगोंके कान्तारका विनाश करनेवाले थे, पांचों ही स्वयं पाँच अग्नियाँ थे। वहां छठा था मेघप्रभ विद्याधर राजा, जैसे इन्द्रियोंके बीचमें मन देखा जाता है, वैसा। जहां जय ही जीवरूपमें व्यवसायमें लगा हुआ है, वहाँ शत्रु अपना कर्म संघात ( सुलोचनाका अपहरणादि कम ) धारण नहीं कर सकता। जिसके भीतर मकरव्यूह रच लिया गया है, ऐसे विजया अागलके कहे पर स्थित सोनाकः पु यकुमार ) ऐसा दिखाई देता है मानो वनगिरिके मस्तकपर सिंह बैठा हो। अपने चौदह भाइयोसे घिरा हुआ वह ऐसा मालूम होता है, जैसे सूर्य अपने किरणकलापसे विस्फुरित हो। पत्ता-उठी हुई तलवारोंसे भयंकर, क्रोधसे लाल अर्ककोति और जयकुमारको सेनाएँ कन्याके कारण युद्ध में आ भिड़ीं ॥२५।। २६ स्वर्णके कंचुक और कवच पहने हुए, अमर्षसे भरी हुई, अपने अंगोंको ढके हुए, अपने मुखोंसे हकारनेको ललकार छोड़ते हुए, चक्र धुमाते हुए, इन्द्रको डराते हुए, झस-कोंत और वज्रसे भयंकर आकारवाले, झनझनाते धनुषोंको डोरीकी टंकारोंवाले, मुक्त तीरोंसे आकाशको आच्छादित करनेवाले, रक्तकी धारासे धरतीपर रेलपेल मचा देनेवाले, अंकुशोंके वश शान्त महागजोंवाले, रथोंके समूहमें धराशायी अश्वोंवाले, तलवारोंके संघर्षशसे उत्पन्न अग्निको ज्वालाओंसे जो पोले हैं। जहां कटे हुए सिर, उर और कर भूमितलपर व्याप्त हैं, भयंकर काल बेताल मिल रहे हैं, मारो-मारो का भयंकर कोलाहल हो रहा है, भेरुण्ड पक्षियोंके झुण्डोंके खण्ड अच्छे लग रहे हैं, धवल छत्र और ध्वजदण्ड खण्डित हैं, ऐसे दोनों सेन्य पत्ता-प्रगलित प्रणोंके रुधिरसे लाल और असामान्य युद्ध करते हुए देखे गये। दोनों ही सैन्य ऐसे लगते थे मानो युद्धलक्ष्मोने दोनोंको टेसूके फूल बांध दिये हों ॥२६॥ उस महायद्धमें, कि जो रक्तसे मत्त निशाचरोंसे विह्वल, धारणोयोंके द्वारा खण्डित आंतोंसे बीभत्स, वाहत गजोंके मस्तकोंके रक्तसे कीचड़मय, रस और चर्बोसे नदोकी शंका उत्पन्न करनेवाला, ऊँचे बंधी हुई पताकाओंके समूहको उखाड़नेवाला, देव-सुन्दरियोंके सन्तोषकी पूर्ति करनेवाला, उदर-ऊरु और उरतलको विदीर्ण करनेवाला, शत्रुओंकी स्त्रियों के मणिहारोंका अपहरण करनेवाला, डरपोक मुखोंसे निकलते हुए हा-हा शब्दको धारण करनेवाला और मृत्युसे भयंकर था, जयकुमारने अपने पुंख लगे हुए और हुंकारको तरह तीखे तीर प्रेषित किये। उनसे घोड़े घायल हो गये, ध्वज छिन्न-भिन्न हो गये, गज भाग गये और निर्मद होकर मर गये। , २-२८
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy