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________________ २८.९१६ हिन्दी अनुपाव चाहिए। जैसे ग्वाला गोमण्डलका पालन करता है उसी प्रकार राजाको पृथ्वोमण्डलका पालन करना चाहिए । जो राजा कारण प्रजाको मारनेवाला होता है, वह राक्षस और यमदूतके समान है। दोष लगाकर कृषक समूहों, निर्दोष ब्राह्मणों और बेचारे पणिकोंका भीषण धनापहरण करता है, बुड्ढों, स्त्रियों और बच्चोंको सतानेवाला है, वह लोगोंकी श्वासज्वालाओंमें जल जाता है और पापकर्मसे बंष जाता है। दुःखको ज्वाला लगनेपर वह जीवित नहीं रहता, वह देशमें नहीं रह सकता, परदेशमें उसे प्रवेश करना पड़ता है। जो राजा अनुरक्त प्रजाको सताता है, वह कुछ ही दिनोंमें स्वयं नष्ट हो जाता है। उसे सच्चे और अनुरक्त भृत्यका भरण करना पाहिए, जो विपरीत है उसकी उपेक्षा करनी चाहिए। कार्यके उपाय और अपायको जानते हुए, व्यायकी देखभाल करते हुए राजाको गुरुके चरणकमलोंकी सेवा करनी चाहिए और उसे सामंजस्यका विचार करना चाहिए। कोषमें आकर विशिष्टका परिहार नहीं करना चाहिए, और दुष्टका पक्ष कभी भी ग्रहण नहीं कहना चाहिए। पत्ता-इस प्रकारसे प्रकाशित नुपचरितका जो राजा पालन करता है कमलासन कमलमुखी कमला (लक्ष्मो) उसके मुखकमलको देखतो है ॥८) गौतम गणधर कहते हैं- "हे श्रेणिक ! सुन, जब वहाँ भरत था, तभी जिनभगवान्के चरणकमलोंमें रत रहनेवाला कुरुजांगल जनपदके गजपुरका राजा सोमप्रम था। अपनी माँ कमोवतीके मनको सन्तुष्ट करनेवाला सोमप्रभ राजाका चौदह भाइयोंमें सबसे बड़ा जय नामका सुन्दर पुत्र गद्दीपर बेठा । कुरुवंशके उस राजाने प्रणाम कर बोर हंसते हुए राजासे कहा कि पिताके मुझे राजपट्ट बाष देने और स्वयं ऋषियोंके रत्नत्रय प्राप्त कर लेनेपर, और उसमें भी निष्पाप और कालुष्यसे व्युत हो जानेपर तया सुरवरोंके द्वारा संस्तुत दानका प्रवर्तन होनेपर, एकानेक विकल्पोंको जाननेवाले ऋषभस्वामीके चरणकमलोंके भ्रमर, घोर वोर तपश्चरणसे अद्भुत चाचा श्रेयांस राजाके बिरक्त हो जानेपर में दिशामुखोंको देखता हुआ अपने भाईके साप पुरवरके भीतर घूमता हुआ एक दिन नन्दन बनके लिए गया जो हवासे हिलती हुई चंचल शाखाओंसे सघन था। वहाँ मैंने शोलगुप्त मुनिको देखा, उनकी वन्दना की और धर्मानन्दसे मेरा मन नाच उठा। मैंने सरलसुन्दर अंगोंवाली नागिनके साथ एक नागको धर्म सुनते हुए देखा। एक साल बीत जानेपर मैंने उस नागिनको फिर देखा परन्तु अपने नाग धारा छोड़ी हुई। पत्ता-दीपड़ जातिका काकोदर ( नाग ) और नागिन दोनोंको धर्म सुनते हुए । वहाँपर मी जातीतर { जातिसे भिन्न ) स्नेहमें अनुरक होनेवाले उनको अपने लीलाकमलसे प्रताड़ित किया||९|| - --
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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