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________________ २८.८३] हिन्दी अनुवाद १९७ और भी राजाके द्वारा बुद्धिकी रक्षा की जाये और अरहन्तकी ही सीख सीखी जाये। मिथ्यात्वके रंग कुगुरु, कुदेव और कुमुनिके सम्पकसे राजाको मति नष्ट हो जाती है। स्वर्णके लोभसे मति नष्ट हो जाती है। अत्यन्त काम और क्रोधसे मति न हो जाती है। हर्ष और अपकतासे मति नष्ट हो जाती है, जिनके प्रतिकूल होनेपर बुद्धि नष्ट हो जाती है, मद और मानसे बुद्धि नष्ट होती है। मदिरापानसे बुद्धि नष्ट होती है, वेश्याजन-गमन करनेसे बुद्धि नष्ट हो जाती है। हरिणवा करने से दुनिष्टहाला है। गुरमें न होनेसे बुद्धि नष्ट हो जाती है । परस्त्रीमें रमण करनेसे बुद्धि नष्ट होती है, जिनके चरण कमलों में पड़ी हुई जिसको बुद्धि कलिके पापको स्पर्श नहीं करतो उसकी बुद्धि नृपविद्या और ऋषिविद्यामें गमन करनेवाली होती है और इहलोक तथा परलोकमें धरती (या लक्ष्मी) उसकी होती है। पत्ता-मति शुद्ध होनेसे धर्ममति बढ़ती है, और धर्म भी मैं उसे कहता हूँ कि जिसका उपदेश क्षीणकषायवाले केवलज्ञानियोंने विश्वमें किया है ।।६।। धर्म क्षमासे गौरवशाली होता है। धर्मका पहला गुण मार्दव है। बार्जव धर्म और मायारत होना पाप है। विचार करनेवाला सत्य वचनोंका समूह धर्म है। पोच्य धर्म है, तप तपना धर्म है, समस्त वस्तुओंका परित्याग करना धर्म है, ब्रह्मचर्य और त्यागसे धर्म है। जिस राजाने जानते हुए भी धर्म नहीं किया, पूर्णायु होनेपर वह नष्ट हो जायेगा और राज्य उसे फिर नरकमें गिरा देगा। इस प्रकार मैंने मतिशुद्धि कही, मैं कुछ भी छिपाकर नहीं रखूगा, राजाओंको अब शरीरको रक्षा बताता हूँ। आगमें प्रवेश करना, सुन्दर शरीरको जला लेना, विषकणोंको खा लेना, ऐसा मरण अच्छा नहीं। जात्मघात, महाजलमें अतिक्रमण करना, पहाड़से गिरना, अपनी आंतोंको घोल देना (संघर्षण ) ये खोटे मरण हैं जो मनुष्यको धुमाकर दुर्दम भवपकमें गिरा देते हैं। घत्ता-मुनिवरके चरणकमलोंमें उपशम धारण कर जो संन्याससे नहीं मरता, वह चौरासी लाख योनियोंके मुखोंमें कष्टपूर्वक परिभ्रमण करता रहता है ॥७॥ भोर भी राजाको निरीक्षण करना चाहिए। प्रजाका धर्म और न्यायसे परिरक्षण करना पाहिए। दुर्मति होकर गाय चिल्लाती है, यह जानकर घसे तीन दणसे ताड़न नहीं करना
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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