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________________ हिन्दी अनुवाद Y राजा गजलीलासे अपने पैर रखता है, और फिर घूमकर अन्तःपुर देखता है । एक क्षण में अपने स्वभावसे मन्त्रका विचार करता है। यह वस्तु छह गुणवाली है या नहीं, यह विचार करता है। वह अपनेको और वर्णोंकी प्रवृत्तियोंको जानता है; वह कृष्यादि वार्ताओंके आचरण और न्याय तथा अन्यायकी उक्तिको जानता है। फिर वह विविध प्रकारके आयुधभवन औौर भांडागारोंका अवलोकन करता है। फिर वह गुरुजन्दोंके सभामण्डपमें प्रवेश करता है, तथा धर्म और शास्त्र के सन्देहको दूर करता है । जिस समय वह कामशास्त्रका अवलोकन करता उस समय काम भी उससे आशंका करने लगता है। वह हस्तिशास्त्र और अश्वशास्त्रको नहीं छोड़ता, आयुर्वेद और धनुर्वेदको भी समझता है। ज्योतिष, शकुन समूह और निमित्त शास्त्रको भी जानता है। नर-नारियोंके विचित्र लक्षणों को समझता है । तन्त्र और मन्त्रका संयोग उसोने किया। भरतने स्वयं भरतसंगीतको उत्पन्न किया । २८.५.१३] १९५ पत्ता - जिसका यश दिशाओंमें घूमता है, और चन्द्रमाके किरणसमूहका पोषण करता है । उस राजा भरतके समान महान् राजा जनमें न तो हुआ है और न होगा ||४|| ५ एक दिन राजाधिराज वह, महिमादिसे महात् सामन्तों, माण्डलीक राजाओं, धीर और अपाय रहित बहुत-से राजाओंसे क्षात्रधर्मका कथन करता है— कुलमति अपना और प्रजाका परिपालन भी मलको दूर करनेवाला सामंजस्य ( करना चाहिए ) सुनिए, अपने बाहुबलसे गजराजोंको तोलनेवाले राजाओंके चारित्र्यके पाँच भेद हैं। जिससे गिरिगुफा में तपका आचरण कर, जिनने पूर्वभव में तीर्थंकर प्रकृतिका अर्जुन किया। जिससे यह लोक धर्म में प्रवर्तित किया और उस क्षत्रियत्वको क्षय होने से बचाया गया। नरनाथको अपने कुलकी रक्षा विशेष रूपसे करनी चाहिए । पण्डितोंके सहवाससे कुलको लक्षित करना चाहिए। दर्शन-ज्ञान और चारित्रके अभ्याससे और दुर्नयोंके विनाश कुलको रक्षा करनी चाहिए। शुद्ध आचार और दृढ़तापूर्वक धारण किये गये अणुव्रत भारसे कुलकी रक्षा करनी चाहिए। यह कुल सादि अनादि और उत्पन्न हुआ दिखाई देता है, बीजांकुर न्यायसे कुल आया है । भरत ऐरावत आदिके द्वारा कुल नाशको प्राप्त होता है, फिर समय-समयपर जिननायके द्वारा वह किया जाता है। घत्ता - सिर झुकाकर और करकमल जोड़कर इन्द्र जिनका कीर्तन करता है, वे राजकुलपरम्परा विधाता है और उनका हो महादेवत्व है ||५||
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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