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________________ सन्धि २८ ___ अपने नगरमें प्रवेश कर उस राजा भरतने खोटे स्वप्नोंके फलको दूर करने के लिए नाना प्रकारके दानोंसे समृद्ध शान्तिकम प्रारम्भ किया। हिमकण और कनक कणोंको पंक्तियोंके समान परिणामवालो घड़ोसे गिरतो हुई दूध और धोको धाराओं, मुनियोंके अनिष्ट और दुष्ट आशयोंका नाश करनेवाली चन्दनसे मिश्रित उत्तम जलोंसे, जाउड देश में उत्पन्न केशरसे लाल जिनेश्वर प्रतिमाओंका अभिषेक किया। भ्रमरकुलको परस्वरूप कुवलय-बकुल-मधु और कमलोंको मालाओंसे पूजा की। बहुत-सी स्तोत्रावलियोंसे संस्तुति की, विशुद्ध भावोंसे भावना की। स्वर्णनिर्मित मुनि-प्रतिमाओंसे युक्त, नाना मणिकिरणोंके समूहवाले, दसों दिशाओंमें जानेवाली टंकार वनिसे रचित चौबीस घण्टे लटकवा दिये गये। पथ-पथमें बन्दनवार सजाये गये, जो आते-जाते हए राजाओंके नेत्रोंको सुहावने लगते थे। जिन्होंने सुखपरम्परा दो है, ऐसे अभय आहार, औषधि और पास्त्रोंके दान दिये गये। भूमिदोहन और गायोंका दोहन करनेवाले गृहस्थोंने घर-घरमें अर्हन्तको पूजा की। करुणाभावसे दूसरे दोन-अनाथोंके लिए वस्त्र और सोना दिया गया। राजाके द्वारा प्रेरित प्रोषधोपवास शोलदान और देवाचनका लोग पालन करते हैं । पत्ता-राजाके धर्मनिष्ठ होनेपर जनपद धर्मनिष्ठ होता है, राजाके पापी होनेपर जनपद पापी होता है, विश्वमें जनपद राज्यका अनुगामी होता है, राजा जैसा चलता है, जनपद भी वेसा ही चलता है ॥१| सावयों ( श्वापदों और श्रावकों) में सिंहके समान अग्रसर होकर भरतेश्वर जिनकर धर्मका आचरण करता है। वह भावलिंगी होकर, शरीरको चिन्ता छोड़कर हाथ लम्बे कर ( कायोत्सर्ग कर ) विचार करता है-"सैकड़ों गायोंमें एक गायका ही दूध पिया जाता है, हजारों स्त्रियों में से एक ही स्त्रीसे रमण किया जाता है, सैकड़ों सारी ( मापविशेष ) भर
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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