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________________ २०....१६ ].:...:..::: : : हिन्दी अनुवाद हे वीतराग महान देवदेव, आपकी जय हो। आपको अनेक देव निर्वाण सेवा करते हैं। आपके शरीर पर वस्त्र नहीं हैं, पासमें नारी नहीं है। हे देव, आप सचमुच कामका नाश करनेवाले हो। आपके पास न चाप है, न चाक है, न खड्ग है, न शूल है, न दण्ड है और न कराल-कृपाण है। हे देव, आप निश्चयसे शत्रुओंके लिए गम्य नहीं हैं । अहिंसाके निवास आप स्वभावसे सौम्य है, न बालक है, न दम्भ है, और न ही विसका लोभ है, न मित्र, नशत्रु, न काम और न कोष । पित्तमें न माया है और न प्रभुताका अभिमान । आप राजराजा और दोनको समान मावसे देखते हैं । न छत्रसे और न सिंहासनसे और न गवसे भरे इन्द्र के आदेशोंसे आपको कुछ लेना-देना। उदासीनभाववाले, अपने कर्मोका नाश करनेवाले निष्पाप आपकी जो लोग वन्दना नहीं करते, वे लोग निश्चित रूपसे लोभाचारके भृत्य हैं, और श्वास लेते हुए हा-हा, व्यथं क्यों संसारमें रहते हैं। पति वही है, जो आशाओंसे रहित हो, आपने बन्धन काट दिये हैं, आप लोकबन्धु और दिव्यभाषी है। आप संसाररूपी कान्तार जलानेके लिए अग्नि हैं, आप प्राणियों के भावान्धकारके लिए सूर्य हैं। मूर्ख लोग मिथ्यात्वके जलमें क्यों निमग्न होते हैं। तुमसे महान् गुरु जीवलोकमें दूसरा कोन है। इस प्रकार देवको नमस्कार कर. भमिनाथ भरत अपनी प्रचर सेनाके साथ अयोध्याके लिए च दिया। बन्दीजनोंसे मुखर, महातुर्यों से निनादित तथा महीमंगलोंसे युक्त अपने भवनमें उसने प्रवेश किया। __ पत्ता-हंसती हुई पुष्पोंकी तरह दांत दिखाती हुई नगर-तरुणियोंके द्वारा भूमीश्वर भरतेश्वर देखा गया और प्रशासित हुआ ।।१४।। इस प्रकार श्रेसठ महापुरुषोंके गुणों और भकारोंसे युक्त इस महापुराणमै महाकवि पुष्पदम्त द्वारा विरचित भौर महाभाय मरत द्वारा अनुमत इस महाकाम्पमें बननाभिका निभुवन संशोमन और जिनपूजा वर्णन नामका सचाईसों परिच्छेद समाप्त हुभा ॥२०॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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