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________________ हिन्दी अनुवाद १० आडम्बरको शान्त करनेवाला जो राजपुरोहित या वह कुरु मनुष्य प्रभंजन प्रवरदेव, फिर धनमित्र, फिर सुखप्रधान परमस्थान में अहमेन्द्र हुआ। फिर महापीठ होकर भो, सर्वार्थसिद्धि में देव उत्पन्न हुआ। वह मरकर मेरा अनन्तविजय नामका पुत्र हुआ जो जीवोंमें सदय है । और जो उग्रसेन था, वह मरकर और बाघ होकर मुनिके चरणों में लीन होकर वह कुरुभूमिमें चित्रांगद मनुष्य हुआ फिर कमलनयन राजा वरदत्त हुआ। फिर अच्युत स्वर्ग में विजयराज सामानिक देव हुआ | तपश्चरण से अपने शरीरको क्षीण कर सर्वार्थसिद्धिका फिर कर वह यशोवतीका पुत्र यह अनन्तवीर्य है। पहला जो हरिवाहन कुमार था, वह सुअर फिर कुरुभूमि में श्रेष्ठ, फिर मणिकुण्डलदेव और वरसेन फिर सामानिक देव फिर वैजयन्त, फिर विनयसे सम्पन्न अहमेन्द्र और फिर वह अच्युत देव च्युत होकर मेरा पुत्र हुआ। जो नागदत्त पलाश ग्रामका वणिक् था वह कुरुभूमिका निवासी आर्य हुआ । २७.११.१६1 १८५ पत्ता- फिर सुमनोरथ देव हुआ, फिर दुःखका नाश करनेवाला चित्रांगद राजा हुआ । फिर समताका संचय करनेवाला सामानिक देव, फिर जयन्त नामका राजा ||१०|| ११ फिर भी वह, जो माणिक्योंसे रचित है मोर मोक्षके निकट है ( अर्थात् जहाँ सिद्धशिला कुछ ही योजन दूर है ) ऐसे विमानमें अमेन्द्र हुआ । दुर्दर्शनीय पापोंसे डरनेवाला था, वह यहाँ हमारा वीर नामका पुत्र हुआ। और जो लोलुप कन्दुक लोभसे मरकर पहले गिरिकाननमें नकुल हुआ था, फिर अमृतभोगी आयं मनोहर, फिर प्रशान्तमदन राजा योगी, फिर सुन्दर सामानिक देव। फिर अपराजित नामका नृपकुमार । फिर अन्तिम प्रसिद्ध अमेन्द्र देव अन्धकारका नाश करनेवाला | वह वीर आकर तुम्हारी माताको देहसे मेरे घर में उत्पन्न हुआ। जो वज्रसंघ जन्म में मेरी बहन थी, वह अनुन्धरा जो मानो परलोकके जानेके लिए पगडण्डी थी, वह सुनन्दाकी धर्मका आचरण करनेवाली सुशील कन्या और बाहुबलिकी छोटी बहन हुई। और जो श्रीमती के जन्म में पण्डिता धाय थी, वह परिभ्रमण कर यहीं स्त्री हुई है। हे महीश ! तुम उसे ब्राह्मी जानते हो, आज भी जन मोहसे किस प्रकार वेदको प्राप्त होते हैं ? यह समस्त भुवनस्थली घूम रहो है, मैं कितनी भवावलियोंको बताऊँ ? रंगमंचपर गया हुआ बहुरूप धारण करनेवाला नट अनवरत दो प्रकारके कर्मोका अनुकरण ( अभिनय ) करता रहता है। ऐसा एक भी स्थान नहीं है जहाँ यह जोव पैदा नहीं हुआ ।" तब भरतने पुनः वीतराग ऋषभजिनसे पूछा । २-२४
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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