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________________ हिम्बी अनुवाद ललितांग देव हुआ। वहाँसे अवतरित होकर मैं वनजंघ राजा हुआ। फिर कुरुभूमिका मनुष्य हुआ, फिर मैं कृतविकल्प दूसरे स्वर्गमें सुभाषी श्रीधर देव हुआ, फिर विधिपूर्वक जिनशासनका आनन्द करनेवाला सुविधि, फिर प्राणोंका त्याग कर मैं सोलह स्वर्ग में अहमेन्द्र हुआ। फिर मैंने वचनाभि होकर, यमकरणको नष्ट करनेवाला सम्पूर्ण तपश्चरण स्वीकार किया। फिर सर्वार्थसिद्धिमें पापोंकी वेदनाका हरण करनेवाला अमेन्द्र हुआ। हे भद्र, फिर मैं यहाँ तीर्थकर हुआ। वणिक् कन्या धनश्री, जो नयको थुक्तिको समाप्त करनेवाली थो, निर्नामिका नामको अत्यन्त गरीब लड़की हुई। फिर वह सुभग बद्धस्नेह ललितांग देवकी लक्ष्मीके समान पत्नी हुई। फिर मरकर कुरुभूमिमै श्रीमती नामसे राबाकी रानी हई। फिर स्वयंप्रभ देव, फिर राक्षसोंका शत्रु केशव, फिर मरकर प्रतीन्द्र हुआ। इस प्रकार जीव अकेला संसारमें परिभ्रमण करता रहता है। धनदेव मी व्रत धारण कर, सर्वार्थसिद्धिमें अहमेन्द्र हुमा, मानो शरमेघोंमें चन्द्रमा उगा हो। वहाँसे अवतरित होकर, वह कुरुवंश रूपी सरोवरका हंस यह राजा श्रेयान्स उत्पन्न हुआ। पत्ता-इसलिए तुम मल नष्ट करो. जिनकी वन्दना करो, तोन रलोंको मनमें ध्यान करो। अमरत्व और सुनरत्वको तो ग्रहण हो नहीं करना, मोक्ष भी प्राप्त करो ||८|| जो गिव नामका आहार और नारीके रसके स्वादका लालची राजा था, वह चौथे नरकमें कष्ट सहकर चंचल और कुटिल नखोंवाला व्याघ्र हुआ। फिर देव और मतिवर नामका तेजस्वी मनुष्य, फिर दिव्य दृष्टि, प्रेयकका देव । फिर पुराने जन्मका भाई सुबाहु, फिर निखिल अर्थोका देवता महमेन्द्र हुआ, जो वहाँ सुख भोगकर यहाँ मेरा पुत्र भरत हुआ है । लो तुम भी शोघ ही पाप रहित होगे । जो प्रीतिवर्धन नामका सुगुण सेनापति था, कुरुभूमिका मनुष्य प्रभाकर नामका प्रसन्न देव, फिर हतपाप और ऋद्धियोंसे प्रौढ़, अकम्पन, फिर वेयक देव, फिर पीठ, फिर सर्वार्थसिद्धिका इन्द्र, फिर यह पापरहित मेरा पुत्र वृषभसेन हुआ। जो पहले राजाका मन्त्री पा, कुरुभूमिका मनुष्य नामसे अमितकान्ति । जो फिर कनकाम नामका देव हुआ, मानन्द नामसे अपने अधीन था। वहांसे च्युत होकर पहले वह राजा महाबाहु धरतीका स्वामी हुआ। पत्ता-फिर वह इष्ट सर्वार्थसिद्धि गया । फिर अहमेन्द्र पारीर नष्ट होनेपर, कलहको शान्त करनेवाला यह बाहुबलि तुम्हारा भाई केवलज्ञानी हुआ ॥९॥
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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