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________________ १६९ २६. १६.६] हिन्दी अनुवाद नहीं आया । यह देखकर वर अपने मनमें विचार करता है कि इसको तो मैंने कहीं भोगा है । इसी प्रकार कहीं पत्थरों से प्रताड़ित किया गया है। इसी प्रकार कहीं खरपवनसे मोड़ा गया हूँ । इसी प्रकार कहीं धूलसमूहसे ढका गया हूँ, इसी प्रकार कहीं मैं दुःखसे काँपा हूँ। इस प्रकार विचारकर उसे नरककी याद आ गयी और उसने यमधरश्री के पास जाकर व्रत ग्रहण कर लिया । तप करके वह ब्रह्मेन्द्र हुआ। जीवके धर्म हो सबसे आगे रहता है । पत्ता - बड़े-बड़े लोग भी गुरुको नमस्कार करते हैं । चन्द्र-सूर्य और देवोंके द्वारा वन्दनीय सुरेन्द्र ने भी देव श्रीधरकी धर्मगुरुके रूपमें पूजा की ॥ १४ ॥ प्रभ १५ श्रीधर भी स्वर्गसे अपना शरीर छोड़कर चन्द्रमा और सूर्योके द्वीप इस जम्बूद्वीपमें, जहाँ इन्द्र जिन तीर्थंकरको ले गया है, ऐसे सुमेरु पर्वतको पूर्व दिशामें विशाल आकारवाले विदेह क्षेत्रकी विस्तीर्ण सीमाओंवाली सुसीमा नगरी में शुभदृष्टि नामका राजा है, जिसके युद्धमें संग्रामदोष नहीं है, जो क्रोधका संवरण करता है, लक्ष्मीरूपो बधूको धारण करता है, जो कामका परिहार करता है, परस्त्रियों में रतिसे दूर रहता है। जो मानका निग्रह करता है, मृदुताको धारण करता है, जिसने लोगों में हर्ष पैदा किया है, परन्तु जो स्वयं अधिक हर्षं नहीं करता, जिसने लोभको नष्ट किया है, जिसने पुरुषार्थका आदर किया है, जिसने अहंकारको नष्ट कर दिया है; जिसने अपने मनको स्थिर बना लिया है, पत्ता--जो रूप, सौभाग्य और गुण में जैसे उर्वशी या इन्द्राणो यो ऐसी उसकी नन्दा नामको सुन्दर रानीका वर्णन हम जैसे लोगोंके द्वारा कैसे किया जा सकता है ? ||१५|| १६ वह देव ( ब्रह्मेन्द्र ) स्वर्गं छोड़कर उसके गर्भसे पुत्र पैदा हुआ। सुविधि नामके उस युवकसे, जो मानो साक्षात् कामदेव था, मुनियोंके भी मनमें उन्माद उत्पन्न करनेवाली अभयघोष वर्ती अपनी गति से हाथीको जीतनेवाली मनोरमा नामको प्रणयिनी पुत्रीसे विवाह कर लिया। जो स्वयंप्रभ नामका देव श्रोमतोका जीव था, अनेक पुण्योंका धारण करनेवाला वह २-२२
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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