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________________ २६. १०.१०] हिन्दी अनुवाद हे सुन्दर शरीर, धवल नेत्र मित्र! तुम श्रद्धान करो कि तत्व सात है। द्रव्यके छह भेद हैं, जोदकायके छह भेद हैं, मस्तिकाय पांच हैं और देवनिकाय पार हैं। ज्ञान पांच हैं, गतिभेद पांच हैं, मुनित्रत पांच हैं, गहस्थोके भी पांच व्रत है। लेश्यामाव छह हैं, गर्व तीन प्रकारके जानो, चारित्र्य तेरह प्रकारका है, और गुप्तियां तीन प्रकारकी। पदार्थ नौ प्रकारके हैं, धर्मके मार्ग दस प्रकारके हैं, सात प्रकारके भय कहे गये हैं, दुष्ट मद आठ प्रकारके हैं, आत्मानुवाद (जीवानुवाद) फर्मानुवाद, चरण नियोग और करपनियोगका उन मुनिने जो वर्णन किया, उसे कमसे सुनकर उसने ग्रहण कर लिया, आर्यने जिस प्रकार, आर्याने भी उसी प्रकार । पत्ता-जिस प्रकार शार्दूल के जीव मनुष्यने सम्यक्दर्शन स्वीकार किया, उसी प्रकार सुबो को सम्पप स्वीकारा पार और नकुलके जीव मनुष्योंको मो मुनिने . सम्यग्दर्शन प्रदान किया ||५|| भव्य नरसमूहके द्वारा भक्तिसे प्रणमित ऋषि आकाशमार्गसे उड़कर चले गये। वज़बाहुके के चारों मतिवर आदि शुभंकर अनुचर तपकर निरखद्य अधःप्रेवेयक स्वर्गके अहमेन्द्र विमानमें उत्पन्न हुए। उन्होंने लोकश्रेष्ठ अहमेन्द्रसुरव और पुण्यके प्रभावको प्रभुताको प्राप्त किया। वजय और आर्यिका श्रीमती, दोनों समतासे अंचित और पूजित होकर मर गये। धमजंघ ईशान स्वर्गके प्रोप्रभ विमानमें श्रीधर नामका श्रेष्ठ सुर हुआ और उसी स्वर्गमें कुन्द और चन्द्रमाके समान आमावाले स्वयंप्रम विमानमें वह स्त्री ( श्रीमती ) जिनके चरणकमलोंमें भक्ति रखनेके कारण सम्यक्त्वसे स्त्रीलिंगका उच्छेद कर स्वयंप्रभ नामका देव हुई, जिसे रूपमें कामदेव भी नहीं जीत सका। व्यानका मी जीव मनुष्य मरकर सुन्दर विमानमें सुन्दर अंगोंवाला सुन्दर
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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