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२६.८.२०]
हिन्दी अनुवाद यह विचार नहीं करना चाहिए कि मनुष्य अपवित्र शरीर है। साधुओंकी देहसे घृणा नहीं करनी चाहिए। संघके हितसे भरे हृदयसे और वात्सल्यके साथ उनकी बेयावृत्य करनी चाहिए । अन्यका दृष्टिपथ जो मिथ्या तुच्छ और बन्ध्य कहा जाता है, उसको प्रशंसा नहीं करनी चाहिए । बढ़ता है पापका लेश जिसमें ऐसी कुगुरु और कुदेवको सेवासे मल ( पाप ) बढ़ता है। शास्त्र. शान और लोकको मूढ़ता अवश्य ही अनर्थका प्रवर्तन करती है। बुधजनके ग्रन्थोंमें निबद्ध सुप्रसिद्ध विद् धातु ज्ञानके अर्थ में है।
पत्ता-ज्ञान ( वेद ) के द्वारा जीवदया करनी चाहिए, स्व और पर सबको जानना चाहिए, जिसके द्वारा जीवित पशु मारा जाता है उस करवाल ( तलवार) को वेद नहीं कहा जाता ||
जो सदेव नारीमें रक्त है, सदा मदिरामें मत्त है, सदेव धनलुब्ध है, सदा शत्रुपर कुद्ध होता है, मोह सहित, माया सहित तथा दोष और रागसे सहित है, वह देव नहीं हो सकता। और देव शून्यभाव हो सकता है, जिसके घरमें वधू है, जिसके शरीरमें रति है, अरे खेदकी बात है कि मन्दबुद्धिवाले जगमें वह भी गुरु है। पाप सहित लोग पाप सहितको, विगतगवं नमस्कार करते है। ऐसे लोग स्वर्ग नहीं जाते और न ही अपवर्ग ( मोक्ष ) जाते हैं। महान् वे कहे जाते हैं जिन्हें, शरीरकी चिन्ता नहीं होती, हारमें या भारमें, जिनको विश्वके प्रति क्षमा होती है। इसलिए वेदको और वैनतेय ( गरुड़ ) को छोड़कर अनिन्द्य देव समूह द्वारा वन्दनीय, वीतकोच अहिंसाका निर्घोष करनेवाले इन्द्र के द्वारा प्रणम्य एकमात्र अनिन्द्य जिनेन्द्रको छोड़कर जगमें दूसरा कौन शत्रुओंका नाश करनेवाला है, और मोहका अपहरण करनेवाला है। उन्होंने जो कुछ कहा है, वह असत्यसे व्यक्त है, वह अहिंसाका प्रकाशन करनेवाला और विज्ञानका आगम है।।
पत्ता-दयासे श्रेष्ठ धर्म और ऋषि-गुरु-देव-आदरणीय-जिनका विश्वास करो, तुम सम्यक्त्व गुणको स्वीकार करो; मैंने संसारका सार तुमसे कह दिया |८|
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