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________________ २६. ३. १७] हिन्दी अनुवाद १५५ नौ माहमें गर्भसे निकलनेपर, शुभ चरितका संचय करनेवाले, उन दोनोंके ऊंचा मुंह कर रहते हुए और हाथकी अंगुलियोंको पीते हुए सात दिन बीत गये । सात दिन घुटनोंके बल चलते हुए, फिर-फिर उठते-पड़ते हुए, सात दिन कुछ पद वचन बोलते हुए और एक दूसरेके साथ कुछ फोड़ा करते हुए बीत गये । फिर सात दिनमें स्थिर, गतिमें कुशल और स्फुट वाणीवाले हो गये। और भी सात दिनमें भ्रमरके काले बालवाले और समस्त कलाकलापमें निपुणतर हो गये। दूसरे सात दिनमें प्रौढ़ तथा नवयौवन एवं श्रृंगारमें रूढ़ हो गये। उनका तीन कोस ( गव्यूति ) ऊंचा शरीर था । बेरके समान उनका श्रेष्ठ आहार था। वह भी तीन दिन में वे एक कोर ग्रहण करते ये। ऐसा हर्षसे रहित ऋषियोंने कहा है। पत्ता-जहां सोनेको जमीन है, पानी ऐसा मोठा कि जैसे रसायन हो। जहाँ सूर्य कल्पवृक्षोंके द्वारा सत्ताईस योजन तक आच्छादित है ||२|| जहाँ सुख उत्पन्न करनेवाले इस वृक्ष हैं, जो जनमनका हरण करते हैं और चिन्तित फल देते हैं । मद्यांग वृक्ष, हर्षयुक्त पेय और मद्य, वादित्रांग, तुरंग और तूयं, भूषणांग हार, केयूर और होर, वस्त्रांग वात्र, गुहांग घर, जो मानो शरद् मेघ हों। भाजनांग वृक्ष, अंगोंको दीप्ति देनेवाले तरह-तरहके बर्तन देते हैं और जो भोजनांग वृक्ष हैं, वे विविध मोज्य पदार्थ तथा रसयुक्त सैकड़ों प्रकारके भोजन देते है । माल्यांग नामके वृक्ष देते हैं उन पुष्पोंको जिनसे मनुष्यका सम्मान बढ़ता है, पुन्नाग नाग श्रेष्ठ पारिजात, भ्रमरोंसे सहित नवमालाएँ, निर्दोष दोषांग वृक्ष तिमिरभावको नष्ट करनेवाले दीप देते हैं। ____ पत्ता-निस्य हो उत्सव, नित्य ही नपा भाग्य और नित्य ही शरीरका तारुण्य । भोगभूमिके मनुष्योंकी जो-जो चीज दिखाई देती है, वह सुन्दर है ||३||
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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