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________________ २.२२.१३] हिन्दी अनुवाद देखो, यह यहाँ नकुल हुआ। मधुके समान मीठे अक्षरोंको सुनकर और गत जन्मान्तरोंकी याद कर ये उपशम भाव धारण करते हैं । न इन्हें डर है और न क्रोध । शुमध्यानके द्वारा आज भी ये अपने दोष नष्ट कर रहे हैं। तुम्हारे द्वारा दिये गये दानको इन वानर, सुअर, बाघ और विषधरदम अर्थात् नकुलने माना है। बहु-भोगभाव और पवित्रता प्रदान करनेवाली कुरुभूमिको आयु इन्होंने बाँध ली है। माठवें काटा जुस ( वाजलंक अपने वरणगाल में देवेन्द्रों को नमन कराने बाले जिनवरेन्द्र होगे । श्रीमती राजा श्रेयांस होगी पहला दान तीर्थंकर देव। ये देव और मनुष्योंके सुखको प्राप्त करेंगे और तुम्हारे ये सुषीजन सिद्धिको प्राप्त होंगे। संसारके कष्टोंसे विरक्त होकर, जिनधर्म अनुरागी तथा दोनों चरणकमलोंमें अपने सिरको झुकानेवाले वधूवरने उन्हें प्रणाम किया। मन्त्रियों और श्रावकगणने उनको वन्दना की, आकाशगामी ऋषिवर नभके प्रांगणसे चल दिये। बातचीत करके चारोंने निश्चित कर लिया कि वे पापसे ही पशुयोनिको प्राप्त हुए। घत्ता-मृगहस्त नक्षत्र बोतनेपर और रात्रिमें वहां रहकर सूर्योदय होनेपर राजा वहाँसे निकला, हाथियोंके घण्टास्वरों और फैली हुई सूंडोंस दिग्गजोंको भयसे कपाता हुआ ||२१|| २२ अपनी शरीरकान्तिसे पूर्णचन्द्रके समान प्रसन्न वह कुछ ही दिनोंमें पुण्डरीकिणी पहुंच गया। अनुन्धरा सहित तथा पतिव्रताके घरको पगडण्डीको सरह उसने अपनी बहनको प्रणाम करते हुए देखा। अविरत स्नेहसे अपने वाह फैलाये हुए जामाताने सासको प्रणाम किया। राजाने भानजेका आलिंगन किया । अविकल और हंसते हुए मुखकमलवाला बालक लक्ष्मीमती और श्रीमतीसे मिला, मानो गंगानदो और यमुना नदियोंसे मिला हो, अपने भाईका कल्याण सोचनेवाले उस बज्रजंघ राजाने बहां स्वामित्वके गुणमें स्वामीको रखा, विद्वानोंका अनुगमन करनेवालेको मन्त्री बनाया। राजाके द्वारा शासित समूचा देश उपदव रहित हो गया । सुधियोंको सम्मानित किया गया और कोष संचित किया गया। पुत्तियोंसे सेनाओंको नियन्त्रित किया गया। योग्य दुर्गोको चिन्ता की गयी। अशेष प्रतिपक्षको नष्ट कर दिया गया। उसने पुण्डरीकको स्थिर राज्यमें स्थापित कर दिया। स्वयं घरका वृत्तान्त पाकर अपनी पत्नीके साथ उत्पललेड नगर गया। चन्द्रमुख चारों अनुचरोंके साथ वह सुधो सुखसे राज्य करता हुमा रहने लगा। इस प्रकार कौन अपने लोगोंको अति देता है ? इतनी बड़ी सामथ्यं और सिद्धि किसके पास है ?
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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