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________________ १४७ २५.२१.३ ] हिन्दी अनुवाद माताने कहा कि बनका विवाह धनसे किया जाता है परन्तु इसने समस्त सोना ठगकर ले किया, तब उसने ( मौने) भी उससे सब धन छीन लिया। वह मायावी पुत्र यहाँ इस वन में मनुष्यमात्र के समान देहवाला वानर हुआ है। हे राजन् ! सुनो, यह नेवला पूर्वकालमें तोरणोंसे मुख सुप्रतिष्ठितनगर में लोलुप नामका हलवाई या । कुछ दिनोंमें है वज्रजंघ, राजाने एक जिनमन्दिर कारीगरसे बनवाना प्रारम्भ किया । धत्ता- वहीं पुराना राजघर था; वहांसे लकड़ी लेकर पुरजन नगर ले जाते । जहाँपर एक ईंट फूटी थी, वहाँ हलवाई अचानक सोना देखता है ||१५|| २० जिसमें करतल और तराजू चंचल है ऐसी वणिक्वरको कलासे, जानबूझकर स्वर्णसे पूरित ईंट तोलकर बाहर मिट्टीके पिण्डों से उन्हें ढक दिया। किसीने भी किसी प्रकार इसे नहीं जाना । वह शीघ्र उन्हें अपने घर उटवा ले गया। काम करनेवालको उसने सरस भांजन दिया। लोभी व्यक्ति भी दानसे काम कर लेता है। यह गूढ़ और निन्दनीय काम कर, दूसरे दिन वह मूर्ख मोहके वशसे, प्रसन्नमुख अपने पुत्रको घरमें रखकर दूसरे गाँव पुत्रीके पास गया । यहाँपर पुत्र पिताकी आज्ञा से खण्डित, सोनेकी ईंट वेश्याको दे दीं। जैसे ही सुनार उसे तोड़ता है वह उसमें राजाके पिताका नामश्रेष्ठ देखता है। डरकर और कांपते हुए प्राणोंसे उसने यह बात राजा को बतायी। वेश्याने सारा हाल बता दिया। वह सारा धन राजाका हो गया। राजाके कुलचिह्नसे जड़ी हुई नृपमुद्राएँ लोलुप रसोइएके घर जा पड़ीं। दूसरोंको डरानेवाले मानो दानवोंके समान राजाके रक्षापुरुषोंने पुत्रको बाँधकर कारागार में बाल दिया। उस अवसरपर हलवाई वहाँ पहुँच गया । घसा--उसने डण्डों के प्रहारोंसे लड़केको इतना मारा कि वह किसी प्रकार मरा भर नहीं । दूसरे के धन के लोभी उस हलवाईंको भी राजकुलने नष्ट कर दिया ||२०| २१ फिर अत्यधिक धनको आशासे मरे हुए हलवाईने 'तुम कहाँ गये थे, तुम दोनों मेरे शत्रु हुए यह कहकर अपने दोनों पैर कुचल कर, लोभ कषायसे मेला वह मर गया और हे राजन्,
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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