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________________ १७.१०] हिन्दी अनुवाद १४३ 9C - - प्रभकरी ( रानी ) का स्वामी प्रीतिवर्धन राजा जब वहां रह रहा था, तब अपने लम्बे हाथ उठाये हुए, आकाशसे उतरते हुए, बनमें चर्यामार्गके लिए प्रवेश करते हुए चारण मुनि आये। गिरिवरके विवरके भीतर स्थित और पशुओंके मांसका आहार करनेके लिए उत्सुक व्याघ्रने पिहिताश्रव नामक निर्मलज्ञानको आंखवाले परमेश्वरको देखा। अपने पूर्वजन्मकी याद कर (यह कहता है) मैं मन्दभाग्य पहले यहींका राजा था। मैं नरक गया। फिर व्याघ्र बना । मैं पशुमांससे अपने शरीरका पोषण क्यों करता है। उसका मन जानकर मुनि भी उसके पास आये और उससे धर्मका नाम कहा । वह व्याघ्न कषायभाव से मुक्त होकर संन्यास में स्थित हो गया। महानुभाव भिक्षु भिक्षाके लिए चले गये। तब, 'ठहरिए' मधुर स्वरमें कहते हुए, चक्रवर्ती राजाने उन्हें शीघ्र पड़गाहा । उसने जलसे उनके दोनों पैरोंका प्रक्षालन किया और केशर सहित कमलसे उसकी पूजा को। गुणवान् सन्तका मान किया, तथा उसने उनके लिए आहारदान दिया । अपना कल्याण चाहनेवाले सेनापति, मन्त्री और पुरोहितोंने अपनी इच्छित बात पूछो । उन्होंने उनके लिए वह व्यान बताया। यतिके कारण वह बाप इन्द्रकी सुख परम्परावाले ईशान स्वर्गमें दिवाकर नामका देव हुआ। स्ववश होकर दूसरा कोन नहीं सुख पा सकता? राजा कर्म नष्ट करके मोक्ष चला गया । वे तोनों ( सेनापति आदि ) दानधर्म की इच्छा रखते हुए पत्ता-तथा मुनिके चरणकमलों में लीन होकर समय के साथ मृत्युको प्राश हुए और कुरुभूमिमें स्थूलबाहवाले और नाना अलंकारोंसे शोभित मनुष्य हुए ।।१६।। कुरुक्षेत्रमें आयुका मान समाप्त होनेपर मन्त्री मर गया। विविध माणिक्योंसे चमकते मार्गोवाले ईशान स्वर्ग-स्वर्णके विमानमें कनकाभ नामका देव हुआ। शंकाहीन पुरोहितका जीव प्रभंजन नामसे रुषित नामक उत्तम विमानमें देव हुभा । सेनापति प्रभाकर नामसे दीप्तदोप्तिवाला दिशाओंको आलोकित करने वाले प्रभा विमानमें उत्पन्न हुआ। हे देव, वे चारों हो तुम्हारी सेवा करनेवाले स्वर्ग में तुम्हारे पारिवारिक देव थे ! वहाँसे च्युत होनेपर तुम जहां जिस प्रकार उत्पन्न हुए, उसी प्रकार ये भी उत्पन्न हुए 1 हे देव ! सुनिए; शार्दूलदेव श्रीमतीके पुण्यप्रवर उदरसे सागरसेन नामका पुत्र हुआ । मतिवर, तुम्हाग श्रेष्ठ मतिवाला मन्त्री हुआ। हे राजन् ! इसकी छाया कौन पा सकता है। हे तात ! प्रभाकर देव मरकर आर्जवा रानोसे अकम्पन नामका पुत्र हुआ। सेनापति, तुम्हारा दिव्य तेज सेनापति हुआ जो मानो शत्रुसेनाके लिए घूमकेतुके रूपमें
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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