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________________ २५.९१२] १३५ हिन्दी अनुवाद छोड़ दिये । तपका आश्रय ले लिया । यमके पाशको काट दिया। कषायोंका निवारण कर दिया। परमात्मा स्वादकी इच्छा की। बुद्धिका अपहरण करनेवाले पिशाच कामदेवको जीत लिया । जो चंचल चित्तवालोंके द्वारा सिद्ध नहीं होती स्थिर चित्तवालोंसे सिद्ध हो जाती है, ऐसा जानो । जो दृढ़ धैर्यको भी नष्ट कर देती है ऐसी उस क्षुषाको जीत लिया। वह वशीजिन चलते हुए माघ माहकी ठण्ड सहन करते हैं । वर्षाकालमें भी जो वानरियोंको भय प्रदान करता है। वृक्षोंके फोटरोंको भर देता है, सांपोंके केंचुलोंको प्रवाहित कर देता है, गिरते हुए जलको सहन करते हैं, ग्रीष्मकालमें भय से परिपूर्ण भयंकर पहाड़पर धरतीपर स्थित होकर मोक्षपन्थी जो सूर्यके सम्मुख तप करते हैं । जिन्होंने भूमिके तिनकेके अग्रभागको नष्ट नहीं किया, और जो सत्य और अन्तरंगसे मुक्त हैं, तथा बड़े-बड़े दुष्टोंको शान्त करनेवाले हैं, ऐसे स्वामीको नमस्कार कर, उस समय वसुन्धराकी पुत्री अनुन्धरा अपनी सासके साथ ( लक्ष्मीवती के साथ ), छत्रकी शोभाकी तरह, पुण्डरीक बालकको लेकर पति वियोगसे घन्दरहित रात्रिके समान काली, अमिततेजकी माँ ( लक्ष्मीमती ) अपने भवन में आ गयी । धत्ता -- फिर अपने पतिकी याद कर वह हंसगामिनी अपने शरीरको महोस्थलपर और नेत्रोंके अंजनसे मैले केशरसे लाल आँसुओंके प्रवाहको स्तनतलपर गिरा देती है -- ||८|| S ९ फिर शोक छोड़ते हुए उसने चन्द्रमाका उपहास करनेवाले अपने पोतेके मुखकमलको देखा | गृहमन्त्रीको मन्त्रणासे निर्मलमति लक्ष्मीमतीने अपने मन में सोचा - "हवा के द्वारा वनमें दावानल ले जाया जाता है और पानी में निर्जीव नाव केवटके द्वारा ले जायी जाती है। असहाय व्यक्ति के लिए कोई भी सिद्धि प्राप्त नहीं होती। इसलिए पहले सहायतारूपी ऋद्धिको चिन्ता करनी चाहिए, जिस विशालभारको स्वामीने उठाया, उसे यह अप्रगल्भ बालक किस प्रकार उठा सकता है ? जिस भारको धीर और घुरन्धर पदल उठाता है, उस भारसे तो बछड़ा एक पैर भी नहीं चल सकता ।" गन्धवै नगरके राजाकी मन्दरमाला सुन्दरी देवीसे उत्पन्न चिन्तागति और मनोति विद्याधर थे । देवीने उन दोनों भाइयोंसे कहा- "मेरे द्वारा किया गया, यह लिखित लेख मुद्रायुक्त सुन्दर मंजूषामें रखा है। तुम जाकर श्रेष्ठ रमणियोंके लिए भी दुर्लभ श्रीमती के पति (घ) को यह लेख दो।" यह सुनकर, माता के पैर पड़कर, उपहार और आभूषण लेकर, रोमांचित शरीर के दोनों अपने पैरोंकी केशरसे मेघोंको लाल-लाल करते हुए चल दिये।
SR No.090274
Book TitleMahapurana Part 2
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages463
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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